भांग की सूक्ष्म खुराक ने अल्ज़ाइमर रोगियों की पहचान क्षमता में रुकावट को थामा
भांग की सूक्ष्म खुराक ने अल्ज़ाइमर रोगियों की पहचान क्षमता में रुकावट को थामा
फैब्रिसियो पाम्पलोना, यूनिवर्सिदादे फेडरल डी सांता कैटरीना (यूएफएससी)
त्रिनदादे (ब्राजील), 19 दिसंबर (द कन्वरसेशन) विश्व भर में जैसे-जैसे बुजुर्ग आबादी रही है, उसके साथ ही अल्ज़ाइमर रोग जैसी मनोभ्रंश (डिमेंशिया) समस्याओं से पीड़ित लोगों की तादात भी बढ़ रही है। इस समस्या के लिए सीमित उपचार और उपलब्ध दवाओं की सीमित प्रभावशीलता को देखते हुए, नए उपचारात्मक तरीकों में रुचि बढ़ रही है।
इन तरीकों में भांग (कैनाबिस) के पौधे से प्राप्त कैनाबिनॉयड्स भी शामिल हैं। कैनाबिनॉयड्स का मतलब है भांग (कैनाबिस) के पौधे में पाए जाने वाले या कृत्रिम रूप से बनाए गए ऐसे रासायनिक यौगिक, जो शरीर के एंडोकैनाबिनॉयड तंत्र पर असर डालते हैं।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑफ़ अल्ज़ाइमर्स डिज़ीज़ में प्रकाशित ब्राजील के एक नए छोटे अध्ययन में हल्के अल्ज़ाइमर रोग से पीड़ित मरीजों पर भांग के सत की सूक्ष्म खुराकों के प्रभावों की जांच की गई। परिणामों में भांग से जुड़ा “नशा” पैदा किए बिना सकारात्मक प्रभाव पाए गए।
सूक्ष्म खुराकों के पीछे के तर्क
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यह अध्ययन फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लैटिन अमेरिकन इंटीग्रेशन (यूएनआईएलए) के प्राध्यापक फ्रांसिसनी नासिमेंटो और उनके सहयोगियों के नेतृत्व में किया गया। इसमें हल्के अल्ज़ाइमर से ग्रसित 24 बुज़ुर्ग मरीजों (60–80 वर्ष) को शामिल किया गया।
इसमें भांग के सत से तैयार एक तेल के दैनिक उपयोग के प्रभावों का मूल्यांकन किया गया, जिसमें टीएचसी और सीबीडी समान अनुपात में तथा अत्यंत कम सांद्रता में (प्रत्येक कैनाबिनॉयड 0.3 मिलीग्राम) मौजूद थे। ये उप-मनःप्रभावी खुराक पौधे के मौज-मस्ती के लिए किए जाने वाले उपयोग से जुड़े “नशे” का कारण नहीं बनतीं।
उपयोग किया गया सत एबीआरएसीई द्वारा दान किया गया था, जो ब्राज़ील में रोगियों की सबसे बड़ी एसोसिएशन है और इसमें भांग/गांजे से जुड़ी कंपनियों या अन्य कोष स्रोतों का कोई योगदान नहीं था।
सूक्ष्म खुराक शब्द आमतौर पर मतिभ्रम वाले पदार्थों के मौज-मस्ती वाले उपयोग से जुड़ा होता है। खुराक के आकार को देखते हुए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इसका कोई प्रभाव भी हो सकता है।
कैनाबिनॉयड यौगिकों की एक मिलीग्राम से कम खुराकों का उल्लेख क्लिनिकल चलन के साहित्य में अक्सर नहीं मिलता। हालांकि, शोधकर्ताओं द्वारा सूक्ष्म खुराक चुनने का निर्णय अचानक नहीं लिया गया था।
वर्ष 2017 में, आंद्रेयास ज़िम्मर और आंद्रास बिल्केई-गोरज़ो के नेतृत्व वाले समूह ने पहले ही यह प्रदर्शित कर दिया था कि टीएचसी की बहुत कम खुराकें अधिक उम्र के चूहों में संज्ञानात्मक क्षमता को बहाल करती हैं।
इसके बाद, चूहों पर किए गए अन्य अध्ययनों ने इस बात को और पुष्ट किया कि एंडोकैनाबिनॉयड प्रणाली, जो न्यूरो संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है और शरीर के तापमान से लेकर स्मृति तक सामान्य मस्तिष्क गतिविधि को नियंत्रित करती है, उम्र बढ़ने के साथ स्वाभाविक रूप से घटती जाती है।
इन निष्कर्षों से प्रेरित होकर, समूह ने प्रारंभ में अल्ज़ाइमर रोग से पीड़ित एक ही मरीज में 22 महीनों तक भांग के सत की सूक्ष्म खुराक का परीक्षण किया। उन्होंने एडीएएस-सीओजी पैमाने का उपयोग करते हुए संज्ञानात्मक सुधार पाया, जो शब्द याद करने जैसी गतिविधियों के माध्यम से संज्ञानात्मक कार्यक्षमता की जांच करता है।
इसमें मिले संज्ञानात्मक-वर्धक प्रभावों की पुष्टि के लिए मनुष्य स्वयंसेवकों पर एक अधिक मजबूत क्लिनिकल परीक्षण करने का निर्णय लिया गया। दूसरा अध्ययन विधिवत नियंत्रित, बिना किसी क्रम के और डबल-ब्लाइंड (जिसमें दोनों पक्षों को जानकारी नहीं होती) क्लिनिकल ट्रायल था।
हमने क्या पाया
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भांग उपचार के प्रभाव को वस्तुनिष्ठ रूप से मापने के लिए कई क्लिनिकल पैमानों का उपयोग किया गया। इस बार सुधार मिनी-मेंटल स्टेट एग्ज़ाम (एमएमएसई) पैमाने में देखा गया, जो डिमेंशिया रोगियों में संज्ञानात्मक कार्यक्षमता के आकलन के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
यह प्रश्नों का एक प्रमाणित सेट है, जिसे मरीज से किसी सहायक व्यक्ति (आमतौर पर परिवार के सदस्य या सहायक) की मदद से पूछा जाता है। 24 सप्ताह के उपचार के बाद, भांग समूह प्राप्त करने वाले समूह में स्कोर स्थिर रहे, जबकि प्लेसिबो समूह में संज्ञानात्मक गिरावट (अल्ज़ाइमर के लक्षणों में वृद्धि) देखी गई।
प्लेसिबो वह स्थिति है जिसमें दवा या उपचार का भ्रम पैदा कर रोगी को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ्य होने के लिए रखा जाता है।
प्रभाव मामूली लेकिन महत्वपूर्ण था। भांग की सूक्ष्म खुराक का उपयोग करने वाले मरीजों के स्कोर उनके प्लेसिबो समकक्षों की तुलना में दो से तीन अंक अधिक थे (एमएमएसई में कुल अंक 30 होते हैं)। संरक्षित या मध्यम रूप से प्रभावित संज्ञानात्मक कार्यक्षमता वाले मरीजों में कुछ ही हफ्तों में बड़े बदलाव की अपेक्षा करना अवास्तविक हो सकता है।
भांग के सत ने अवसाद, सामान्य स्वास्थ्य या समग्र जीवन गुणवत्ता जैसे अन्य गैर-संज्ञानात्मक लक्षणों में सुधार नहीं किया। दूसरी ओर, प्रतिकूल दुष्प्रभावों में कोई अंतर नहीं पाया गया। इसका कारण संभवतः उपयोग की गई अत्यंत कम खुराक थी।
यह परिणाम मेरे 2022 के अध्ययन से मेल खाता है, जिसमें उम्र बढ़ने के दौरान एंडोकैनाबिनॉयड सिग्नलिंग में कमी पाई गई थी, जिसका अर्थ है कि उम्रदराज़ मस्तिष्क कैनाबिनॉयड्स की सुरक्षा के बिना संज्ञानात्मक क्षरण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
अन्य तंत्रों के अलावा, कैनाबिनॉयड्स मस्तिष्क में सूजन के कारकों को कम करके संज्ञानात्मक क्षमता की रक्षा करते प्रतीत होते हैं।
एक नया प्रतिमान: ‘नशे’ के बिना भांग
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मस्तिष्क की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में भांग को एक चिकित्सीय उपकरण के रूप में स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधा शायद वैज्ञानिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक है। कई देशों में “नशा होने” का डर कई मरीजों और यहां तक कि स्वास्थ्य पेशेवरों को भी हतोत्साहित करता है।
लेकिन इस तरह के अध्ययन दिखाते हैं कि इस समस्या से बचने के तरीके मौजूद हैं — इतनी कम खुराकों का उपयोग करके कि चेतना में कोई स्पष्ट परिवर्तन न हो, फिर भी सूजन और न्यूरोप्लास्टिसिटी जैसी महत्वपूर्ण जैविक प्रणालियों को प्रभावित किया जा सके।
भांग की सूक्ष्म खुराकें मनःप्रभावी क्षेत्र से बाहर रहकर भी लाभ पहुंचा सकती हैं। इससे विशेष रूप से रोकथाम पर केंद्रित नए फॉर्मूलेशनों का रास्ता खुल सकता है, खासकर अधिक संवेदनशील आबादी में, जैसे हल्के संज्ञानात्मक ह्रास वाले बुज़ुर्ग या डिमेंशिया का पारिवारिक इतिहास रखने वाले लोग।
आगे क्या?
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अपनी संभावनाओं के बावजूद, इस अध्ययन की कुछ महत्वपूर्ण सीमाएं भी हैं: नमूने का आकार छोटा है और प्रभाव केवल संज्ञानात्मक पैमाने के एक आयाम तक सीमित रहे। फिर भी, यह कार्य एक अभूतपूर्व कदम है — यह अल्ज़ाइमर रोगियों में सूक्ष्म खुराक पद्धति का सफलतापूर्वक परीक्षण करने वाला पहला क्लिनिकल परीक्षण है। यह इस पौधे को महत्वपूर्ण बीमारियों के उपचार में देखने का एक नया तरीका प्रस्तुत करता है।
आगे बढ़ने के लिए, अधिक प्रतिभागियों, लंबे अनुवर्ती समय और जैविक संकेतकों (जैसे न्यूरोइमेजिंग और सूजन संबंधी बायोमार्कर्स) के संयोजन के साथ नए अध्ययनों की आवश्यकता होगी।
क्या भांग अल्ज़ाइमर रोग की प्रगति को धीमा कर सकता है? हमने इसे समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, लेकिन फिलहाल यह प्रश्न अनुत्तरित बना हुआ है।
(द कन्वरसेशन) माधव वैभव
वैभव

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