दमन, धमकियों और संघर्ष के कारण हजारों पत्रकार अपने देश से भागने को हुए मजबूर : संरा विशेषज्ञ

दमन, धमकियों और संघर्ष के कारण हजारों पत्रकार अपने देश से भागने को हुए मजबूर : संरा विशेषज्ञ

  •  
  • Publish Date - May 23, 2024 / 01:51 PM IST,
    Updated On - May 23, 2024 / 01:51 PM IST

संयुक्त राष्ट्र, 23 मई (एपी) संयुक्त राष्ट्र (संरा) की एक अन्वेषक ने बुधवार को कहा कि हाल के वर्षों में हजारों पत्रकारों को राजनीतिक दमन से बचने, अपनी जान बचाने और संघर्ष से बच निकलने के लिए अपने देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन निर्वासित होने के बाद भी वे शारीरिक रूप से और डिजिटल तथा कानूनी खतरों का सामना करते रहे।

आइरीन खान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि निर्वासित पत्रकारों की संख्या बढ़ी है क्योंकि कुछ लोकतांत्रिक देशों में स्वतंत्र और आलोचनात्मक मीडिया के लिए जगह कम हो रही है, जहां सत्तावादी प्रवृत्तियां जोर पकड़ रही हैं।

उन्होंने कहा कि आज लोकतंत्र का समर्थन करने वाला और शक्तिशाली नेताओं को जवाबदेह ठहराने वाला निष्पक्ष, स्वतंत्र और विविधतापूर्ण मीडिया दुनिया के एक तिहाई से ज्यादा देशों में नदारद है या उसके काम में रुकावटें हैं। इन एक तिहाई देशों में विश्व की दो-तिहाई से ज्यादा आबादी रहती है।

अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के संरक्षण और प्रसार पर संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र अन्वेषक ने कहा कि ज्यादातर पत्रकार और कुछ स्वतंत्र मीडिया संस्थान अपने दश को छोड़ चुके हैं ताकि वे बिना डर या पक्षपात के स्वतंत्र रूप से खबरें दे सकें।

बांग्लादेशी वकील और एमनेस्टी इंटरनेशनल की पूर्व महासचिव खान ने कहा कि निर्वासित पत्रकार अक्सर खुद को अस्थिरता वाली परिस्थितियों में पाते हैं, जहां अक्सर उन्हें तथा उनके परिवारों को अपने ही देशों में धमकियों का सामना करना पड़ता है, वहीं जिस दूसरे देश में शरण लेते हैं वहां बिना किसी कानूनी दर्जे या पर्याप्त समर्थन के काम जारी रखना पड़ता है।

उन्होंने कहा, ”अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के डर और आर्थिक तंगी व विदेशी में रहते हुए अन्य कई चुनौतियों से पार पाने के लिए संघर्ष करते हुए कई पत्रकार अंततः अपना पेशा छोड़ देते हैं।”

खान ने कहा, ”इस प्रकार निर्वासन, आलोचनात्मक आवाज को चुप कराने और प्रेस पर लगाम कसने का एक और तरीका बन गया है।”

उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में अफगानिस्तान, बेलारूस, चीन, इथियोपिया, ईरान, म्यांमा, निकारागुआ, रूस, सूडान, सोमालिया, तुर्किये और यूक्रेन से सैकड़ों पत्रकारों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

उन्होंने दावा किया कि इसके अलावा बुरुंडी, ग्वाटेमाला, भारत, पाकिस्तान और ताजिकिस्तान सहित कई अन्य देशों से भी कुछ पत्रकारों ने अपना देश छोड़ा है।

भाषा जितेंद्र वैभव

वैभव