कभी लोकप्रिय बिनाका गीतमाला का केंद्र रही श्रीलंकाई रेडियो सेवा के 100 वर्ष पूरे

कभी लोकप्रिय बिनाका गीतमाला का केंद्र रही श्रीलंकाई रेडियो सेवा के 100 वर्ष पूरे

कभी लोकप्रिय बिनाका गीतमाला का केंद्र रही श्रीलंकाई रेडियो सेवा के 100 वर्ष पूरे
Modified Date: December 21, 2025 / 05:59 pm IST
Published Date: December 21, 2025 5:59 pm IST

कोलंबो, 20 दिसंबर (भाषा) हिंदी फिल्म संगीत को ‘बिनाका गीतमाला’ जैसे अनूठे साप्ताहिक कार्यक्रम के जरिये लोकप्रिय बनाने वाली श्रीलंका की रेडियो सेवा ने इस हफ्ते अपने सौ वर्ष पूरे कर लिए। श्रीलंका की यह रेडियो सेवा पूरे भारत में कभी ‘रेडियो सीलोन’ के नाम से लोकप्रिय थी।

श्रीलंका की रेडियो सेवा आधिकारिक तौर पर 16 दिसंबर, 1925 को शुरू की गई थी। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, यह एशिया का पहला व्यावसायिक ‘शॉर्ट-वेव’ स्टेशन था।

श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एसएलबीसी) ने शताब्दी वर्ष के अवसर पर एक बयान में कहा, ‘‘राष्ट्रीय रेडियो के पास एशिया में रिकॉर्ड किए गए गानों का सबसे बड़ा संग्रह है, जिसमें भारत में भी ना पाए जाने वाले दुर्लभ हिंदी गाने और विश्व नेताओं की आवाजों की रिकॉर्डिंग का एक अनूठा संग्रह शामिल है।’’

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मूल रूप से दूरसंचार विभाग का हिस्सा रही इस रेडियो सेवा का एक अक्टूबर, 1949 को पुनर्गठन किया गया और इसे ‘रेडियो सीलोन’ नाम दिया गया। लेकिन बाद में पांच जनवरी, 1967 को इसका नाम बदलकर श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एसएलबीसी) कर दिया गया।

रेडियो सीलोन पर लगभग चार दशकों तक हर सप्ताह ठीक रात आठ बजे हजारों भारतीय अमीन सयानी की सुरीली आवाज सुनने के लिए उत्सुक रहते थे।

सयानी के दमदार स्वर में किया गया उद्घोष ‘भाइयो और बहनो’ हिंदी फिल्म संगीत के दीवाने भारतीय उपमहाद्वीप में गूंजता था और लाखों श्रोताओं में उस दिन के गानों को लेकर उत्सुकता पैदा करता था।

बिनाका गीतमाला का प्रसारण रेडियो सीलोन पर 1952 से 1988 तक हुआ। इसके बाद 1989 में यह ‘ऑल इंडिया रेडियो’ की विविध भारती सेवा के तहत प्रसारित किया गया जो 1994 तक जारी रहा।

आज एसएलबीसी घरेलू स्तर पर तीन सिंहली, दो तमिल और एक अंग्रेजी सेवा प्रसारित करता है, साथ ही हिंदी, कन्नड़, तेलुगु और मलयालम में विदेशी सेवाएं भी प्रसारित करता है।

इस वर्ष 16 दिसंबर को हिंदी उद्घोषक ने यह कहकर शुरुआत की कि 60 और 70 के दशक के गाने, जिन्हें हिंदी फिल्म संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता है, श्रीलंका में इतने लोकप्रिय थे कि उनकी प्रतियां सिंहली भाषा में भी उपलब्ध थीं।

भाषा संतोष नेत्रपाल

नेत्रपाल


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