अजान का जवाब हनुमान चालीसा को गरमाने वाले हैं ये लोग....

इन चार कारणों को खत्म कर दें तो न अजान बंद होगी न हनुमान चालीसा

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:35 PM IST, Published Date : April 20, 2022/10:45 am IST

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बरुण सखाजी

मस्जिदों में अजान के जवाब में हनुमान चालीसा सामुदायिक टकराव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जिन्हें धर्म की समझ नहीं वे ही इस दिशा में विवाद कर रहे हैं और करते रहेंगे। इस विवाद को उठते हुए यूं तो कइयों वर्ष हो चुके, लेकिन राज ठाकरे जैसे मुख्यधारा के राजनेताओं के ऐलान के बाद से यह बड़ा मुद्दा बन गया है। यूपी की सरकार जैसे ऐसे मुद्दों को लपकने के लिए ही बैठी रहती है। देर नहीं हुई और योगी ने ऐलान कर दिया लाउडस्पीकर प्रीमाइस तक ही सुनाई देना चाहिए। हालांकि योगी सरकार ने यह पर्टिकुलर अजान के लिए  नहीं कहा। जारी सर्कुलर में यह स्पष्ट है कि यह सभी धर्मों पर लागू होगा। परंतु योगी हैं तो स्वाभाविक है कि इसे अजान पर नियंत्रण के रूप में ही माना जाएगा और मनवाया भी जाएगा।

पाकिस्तान की तरह सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए बढ़ रहे सामाजिक विद्वेष का नतीजा क्या होगा। पाकिस्तान आज ढलान पर है। चारों तरफ आर्थिक संकट से घिरा है। कौमी अविश्वास से जूझ रहा है। एक ही ईश्वर के उपासक एक नहीं रह पा रहे। यह हालात सिर्फ भारत के हों तो दुनिया ज्ञान दे सकती थी, मगर फिलहाल के दौर में दुनिया के अनेक देशों में ऐसा ही है। मुसलमानों का संघर्ष जहां जो हैं उनके साथ जारी है। फ्रांस, वियतनाम, थाईलैंड, चीन, भारत, अमरिका, यूरोपिय कुछ देश इसके उदाहरण हैं।

असल में टकराव एक दिन की बात नहीं होती। इसके लिए पूरी पृष्ठभूमि तैयार की जाती है। इसमें सिर्फ खाद-पानी राजनीति डालती है, बीजरोपण तो कथित धर्मगुरु करते हैं। इसमें भयानक तेज ग्रोथ करने के लिए दुनियाभर में धर्म, संस्कृति और इतिहास को अपने हिसाब से ओढ़ने-बिछाने वालों की जमात सक्रिय है। ऐसे में सिर्फ सियासत को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। समाज, धर्म की व्याख्याएं और धर्म को लेकर कुंठा, अल्पज्ञान और अज्ञान अधिक जिम्मदार है।

पहले मर्ज के लक्षणों से मर्ज की पहचान करना, फिर कोई प्रामाणिक टेस्ट से इसे पकड़ना। तब ही कोई उपचार नियोजित किया जा सकता है। अभी तो हम मर्ज ही ठीक से नहीं पहचानना चाहते। धर्मगुरु, इतिहास-संस्कृतिवादी, राजनीति और अज्ञानता ये चार पाए हैं, जिन पर इस समय अजान-चालीसा विवाद की इमारत खड़ी हो रही है। हम सिर्फ एक पाये को दोष देकर बच निकलना चाहते हैं। धर्मगुरुओं के जहरीले ज्ञान और संज्ञान पर कोई खुलकर चर्चा ही नहीं कर रहा। इतिहासविदों, संस्कृतिविदों की धूर्तताएं भी समझने की फिलवक्त कोई कोशिश नहीं दिखती। अज्ञानता तो अंतिम कारक है, जिसे पहले तीन कारकों को साधते ही नियंत्रित किया जा सकता है।

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