बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी24
खबर आई कि दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में आग लगने से एक बुजुर्ग की मौत हो गई। अव्वल तो वृद्धाश्रम समाज में बढ़ रही पारिवारिक असहिष्णुता के प्रतीक हैं, दूसरी बात अच्छे घरों के बुजुर्ग भी अगर उपेक्षित हों तो कठिन समय है। किसी बुजुर्ग को वृद्धाश्रम में रखने का कोई भी आधार नहीं हो सकता सिवाय इसके कि उसके परिजन उसे नहीं रखना चाहते। न इसका कारण केयर हो सकता, न इलाज, न विदेशों में शिफ्टिंग, न आर्थिक स्थिति।
दिल्ली के इस वृद्धाश्रम में जो बुजुर्ग जलकर खाक हो गईं, वे कौन थी? यह सवाल उठना चाहिए। इसलिए उठना चाहिए क्योंकि वे भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के बेटे की बहू थी। क्योंकि वे भारत की पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार की भाभी थी। जब हम वंशज होने के नाते कीर्तियां बटोरते हैं तो अपकीर्ति से नहीं बच सकते।
भारत की राजनीति में गहरे बैठे वंशवाद के हितग्राहियों की लंबी फेहरिश्त है। किंतु जब जिम्मेदारियों की बात आती है तो कुतर्कों को तर्क बनाकर पेश किया जाने लगता है। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ऐसे राजनीतिक परिवार के लोग जो भारत में दलित उत्थान का प्रतीक बने हों। जिन्हें देश और कांग्रेस ने दलित होने के नाते उपप्रधानमंत्री तक पहुंचाया हो उस परिवार में कोई वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है। जो समाज के उत्थान का तारा बना हो उसकी पीढ़ी अपने ही बुजुर्ग का सहारा न बन सकी। अगर पीढ़ियां किसी की कीर्ति को लेकर गौरवगान करती हैं तो उन्हें अपकीर्ति के लिए भी पूरी तरह से तैयार रहना चाहिए। यह सिर्फ उस नाती का मामला नहीं जिसने उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ रखा था, बल्कि यह पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार पर भी सवाल है। क्या हमने वंश, जाति, धर्म के नाम पर अयोग्यों को तो नहीं चुन रखा।
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