बरुण सखाजी (व्यंग्य उपन्यास परलोक में सैटेलाइट के अंश)
चित्रगुप्त, इनका निर्णय बड़ा कठिन है, यमराज ने कहा।
हां, साब, है तो मगर करें क्या?, चित्रगुप्त ने जवाब दिया।
चर्चा चल रही है। दो आत्माएं हाथ बांधे सामने खड़ी हैं। सोच रही हैं जल्दी ये लोग बहस खत्म करें और जो सजा देना दे दें, चूंकि धरती पर जो हम भोग कर आए हैं उससे तो यहां क्या ही सजा होगी।
तो चित्रगुप्त एक काम करो पति नंबर-2 को सजा मुक्त कर दो और पति नंबर-1 को कांटे वाले कोड़े लगाओ। यमराज ने कहीं फोन पर बात करने के बाद फैसला सुनाया।
लेकिन, सर वो पति नंबर-2 सजा मुक्त कैसे किया जा सकता है। उसने तो अपनी पत्नी से झूठ बोला। जबकि पति नंबर-1 को कोड़े क्यों लगाए जाएं उसने तो पत्नी को सच बताया और निभाया भी। चित्रगुप्त ने झिझकते हुए कर्मपोथी से पढ़कर बताया।
छोड़ो न, हेडऑफिस ने जो कहा है वो करो। ज्यादा खोपड़ी न खपाओ। यमराज ने लगभग झिड़कते हुए कहा।
लेकिन सर, पति नंबर-2 की पूरी कहानी उसे मुक्त करने जैसी नहीं लग रही। उसके दूसरे सोर्स से प्राप्त पुण्यों का भी हमने अलग से वैल्युएशन किया है। वह किसी तरह से भी सजामुक्त नहीं हो सकता। हम विधि से बंधे हैं। चित्रगुप्त ने फिर कहा।
अबकी यमराज ने घूरकर तिरछी निगाहों से देखते हुए कहा- ठीक है जरा कहानी बताओ दोनों की, क्या है?
चित्रगुप्त बोले, जी सर, पहले पति नंबर-2 की सुनिए। वह करवा चौथ पर पत्नी से सुबह कहकर निकला, मेरा भी व्रत है। दोपहर को उसने ढाबे में छककर खाया और रात को चलनी में चांद देखकर खुद का और पत्नी का व्रत तुड़वाया। पत्नी भावुक होकर रोने लगी। उसके पति ने उसके लिए इतनी तपस्या की। दिनभर सेल्स के चक्कर में भटकता रहा, गालियां खाता रहा, भूखा, प्यासा, क्योंकि वह प्यार बहुत करता था अपनी पत्नी को। जबकि पति नंबर-1 ने पत्नी के लिए व्रत रखा, प्यासा रहा शाम को पत्नी का व्रत तुड़वाया और दोनों ने करवा चौथ मनाया। यह मुझे ज्यादा ईमानदार लगा। सत्यवादी लगा।
यमराज ने कर्मपोथी के फूटनोट पढ़ने को बोला। दरअसल कर्मपोथी में फूटरनोट में इंसानों के कर्म के साथ उस दौरान चल रही मन की बातों को लिखा जाता है।
चित्रगुप्त फूटनोट पढ़ते हुए- सर, पति नंबर-1 में सुबह पत्नी से बेइंतेहा प्यार दिखा। ऑफिस जाते हुए भी प्यार रहा। ऑफिस में काम करते हुए भूख लगी। भूख बढ़ी तो पत्नी पर गुस्सा आने लगा। करवा चौथ को गालियां देने लगा। पत्नी को और उसके पिता पर गुस्सा करने लगा। कौन गले से बांध दी। व्रत रखो और भूखे मरो, काम करो, शाम को चलनी से चांद, अरे ये चांद चलनी से भी कोई देखता है। कौन कहां से ले आया। धत। मरना पड़ेगा, दिनभर भूख से प्यास से। जहां जो खाने दिखता दो किलोमीटर की जीभ लपलपा रही थी।
सर और पति नंबर-2 सुबह पत्नी से प्यार करता दिखा। ऑफिस आकर पहले बरगर खाया। पत्नी का चेहरा दिखा, खुश…। वाह कितनी प्यारी है, खुश है कम से कम एक करवा चौथ के बहाने। फिर पिज्जा मंगवाया वह भी खाया। फिर लंच किया। पत्नी से प्यार बराबर रहा। सोचता रहा, कितनी भोली है। चलनी से चांद देखकर मेरी उम्र बढ़ा रही है। बहुत प्यारी है। बस दिनभर पत्नी के बारे में सोचता रहा।
यमराज टोकते हुए, बस यही तो बात है। पति नंबर-1 कुढ़ता रहा, मन में गरियाता रहा, इसलिए इसे सजा दे दो और पति नंबर-2 ने कम से कम उसकी खुशी का ख्याल रखा और अपनी जरूरत का भी। तो इसे मुक्त कर दो।
चित्रगुप्त मिमियाते हुए, लेकिन सर यह तो अन्याय हुआ न।
यमराज दहाड़ते हुए, बेटा पति-पत्नी के रिश्ते में झूठ ही सच होता है और सच सिर्फ होरीबल होता है और सिर्फ होरीबल। अब आगे बोलने से पहले भाई पहले तय कर लेना धर्मराज मैं या तू।
क्रमशः