PM Awas yojna on Chhattisgarh

#NindakNiyre: नए दौर के चुनावों में अहम है लाभार्थी वर्ग, पीएम आवास इसमें और भी महत्वपूर्ण, कहीं बघेल ने देर तो नहीं कर दी, देखिए पूरा विश्लेषण

PM Awas yojna: 2018 में भूपेश सरकार बनते ही केंद्र और राज्य के बीच विभिन्न विषयों को लेकर तनातनी शुरू हो गई। इनमें से एक विषय पीएम आवास भी रहा। कोरोना के पहले तक तो भूपेश सरकार पीएम आवास में राज्यांश दे रही थी, लेकिन बाद में हाथ खींच लिए।

Edited By :   Modified Date:  March 18, 2023 / 09:54 PM IST, Published Date : March 18, 2023/9:54 pm IST

बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, IBC24

पीएम आवास देश की ऐसी जमीनी योजना है जिसने गांवों की सूरत बदल दी। नतीजतन यह पॉलिटिकल हॉट केक बन गई। भूपेश सरकार लगातार अपनी सफाई दे रही है तो भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाकर गांव-गांव तक पहुंचा दिया है। भाजपा ने इसे लेकर हाल ही में विधानसभा घेराव किया। अब जो छत्तीसगढ़ सरकार 2 सालों से राज्यांश का एक रुपया नहीं दे रही थी उसने इस साल बजट में 3200 करोड़ से अधिक का आवंटन कर दिया। सरकार कह रही है पीएम आवास पर छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हुआ है, लेकिन भाजपा इसे मुद्दा बना चुकी है। ऐसे में दोनों के बीच चुनाव तक पीएम आवास को लेकर हमले जारी रहेंगे। आइए जानते हैं, पीएम आवास में अब तक क्या हुआ और किसने कितना किया? क्या सरकार फंस रही है या कि भाजपा इस मामले में बढ़त लेती दिख रही है। आज के विश्लेषण में यही सब कुछ।

पहले जानिए विवाद क्या है?

2018 में भूपेश सरकार बनते ही केंद्र और राज्य के बीच विभिन्न विषयों को लेकर तनातनी शुरू हो गई। इनमें से एक विषय पीएम आवास भी रहा। कोरोना के पहले तक तो भूपेश सरकार पीएम आवास में राज्यांश दे रही थी, लेकिन बाद में हाथ खींच लिए। नतीजा ये हुआ जिनके घर बन रहे थे वे रुक गए और नई स्वीकृतियां थम गईं। भूपेश बघेल ने तर्क दिया जब योजना केंद्र की है तो सौ फीसदी पैसा केंद्र ही दें, यही सुर बंगाल की ममता सरकार के रहे। ममता सरकार ने तो समय रहते सुर बदल लिए, लेकिन बघेल अड़ गए। फिर बात आई जब राज्य अपना अंश देंगे तो पीएम आवास नाम ही क्यों रखेंगे। फोटो भी सीएम की हो और योजना का नाम भी। इस सब में 2 वित्त वर्ष कुर्बान हो गए। इस बीच भाजपा ने गांव-गांव में पीएम आवास को लेकर लोगों तक बात पहुंचानी शुरू कर दी थी। चूंकि लोगों ने चंद महीनों में ही झोंपड़ियों से पक्के घर बनते देखे थे, जो अचानक से रुक गए। इसलिए लोगों को भाजपा की बात पर यकीन होने लगा। बस यहीं यह मुद्दा बन गया, जिसे लेकर अब सरकार डैमेज कंट्रोल कर रही है।

रमन सरकार ने 10 हजार करोड़ तो भूपेश ने 7 हजार करोड़ दिए

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की साइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 में शुरू इस योजना का पहला आवंटन 2016-17 के लिए हुआ। इसमें राज्य में तब भाजपा की सरकार थी। डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली इस सरकार ने पहले वित्त वर्ष 2016-17 में 2 लाख 90 हजार 239 लाख रुपए का राज्यांश देकर 2 लाख 32 हजार 903 पीएम आवास बनाए। अगले वर्ष 2017-18 के लिए 2 लाख 54 हजार 113 लाख का राज्यांश देकर 2 लाख 6 हजार 372 मकान बनाए। अपनी सरकार के अंतिम वर्ष में डॉ. रमन सरकार ने 2018-19 के लिए 4 लाख 30 हजार 874 लाख का अब तक का सबसे अधिक राज्यांश देकर 3 लाख 48 हजार 960 मकान बनाए। अब सरकार बदल गई तो भूपेश सरकार आई। इन्होंने 2019-20 के अपने पहले बजट में पीएम आवास के लिए 1 लाख 87 हजार 515 लाख का राज्यांश देकर 1 लाख 51 हजार 100 मकानों का केंद्र से लक्ष्य हासिल किया। फिर आ गया कोरोना तो सरकार को एलॉकेशन में दिक्कत होने लगी। 2020-21 के लिए भूपेश सरकार ने 1 लाख 96 हजार 641 लाख रुपए का आवंटन किया और इस बार फिर लक्ष्य मिला 1 लाख 57 हजार 815 मकानों का। 2021-22 के बाद सरकार इस मद में एक रुपए भी नहीं डाल पाई। फिर अब 2023-24 में 3268 करोड़ का एलॉकेशन किया गया है। इस तरह से देखें तो रमन सरकार के मुकाबले भूपेश सरकार ने 1 लाख 86 हजार 991 रुपए कम राशि आवंटित की।

3 लाख 28 हजार 170 मकान पीछे

ग्रामीण विकास मंत्रालय की साइट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में अभी तक 11 लाख 76 हजार 68 मकान बन जाने थे। लेकिन बने सिर्फ 8 लाख 47 हजार 898 ही हैं। यानि केंद्र का अंश पड़ा है और राज्य का अंश नहीं मिला तो 3 लाख 28 हजार 170 मकान अधर में हैं। राजनीतिक रूप से भाजपा जब हमला करती है तो वह इनकी संख्या बढ़ाकर 8 लाख तक बताती है।

रमन ने 3 साल में बनाए 7 लाख 88 हजार, बघेल ने बनाए 59 हजार

छत्तीसगढ़ की रमन सरकार ने अपने आखिरी के 3 सालों में 7 लाख 88 हजार 235 मकान बनाए। इसके लिए 9 लाख 75 हजार 226 लाख रुपए की राशि आवंटित की गई थी। जबकि भूपेश सरकार के साढ़े चार सालों में 59 हजार 639 मकान ही बनाए जा सके। इसके लिए लगभग 3900 करोड़ की राशि आवंटित की गई थी।

अब बजट में दिए 32 सौ करोड़, बन सकते हैं 75 हजार घर लेकिन पेंच और भी हैं

जब मुद्दा बन गया तो बघेल सरकार सक्रिय हुई। बजट में 3268 करोड़ का आवंटन किया, इसमें कितने मकान बनाए जाएंगे इसके आंकड़े केंद्र ने अभी जारी नहीं किए हैं। इस राशि को 40 फीसदी राज्यांश मान लें और केंद्र की 60 फीसद राशि मिलाकर यह लगभग 9 हजार करोड़ तक पहुंच जाएगी। निर्माण सामग्री, महंगाई दर आदि के कैल्कुलेशन के बाद इस राशि से 75 हजार मकान बनाए जा सकते हैं।

योजना क्या है यह भी जान लीजिए

मोदी सरकार ने साल 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण व शहरी की शुरुआत की। इसके तहत गांवों में गरीबों को पक्के मकान बनाकर दिए जाने हैं। 3 किस्तों में होने वाला भुगतान इतना सटीक रखा गया कि इसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं हो सका। सारी व्यवस्था ऑनलाइन और सीधे हितग्राही के खाते में, वह भी काम की जियो टैगिंग और एक्चुअल रिपोर्ट के आधार पर। तमाम केंद्रीय सैंपलिंग, सर्वे, सेंसस एजेंसियों के अनुसार पात्र हितग्राहियों के नाम हर वित्तीय वर्ष में आते गए और मकान मिलते गए। इसमें 60 फीसद हिस्सा केंद्र का और 40 फीसद राज्यों को देना होता है। यह दुनिया की सबसे ज्यादा मैदान पर असरदार योजनाओं में शुमार है।

क्या असर होगा पीएम आवास का चुनावों में

पीएम आवास जैसी केंद्र की आधा दर्जन योजनाएं ऐसी हैं जिनका सीधा लाभ लोगों को मिला है। इसी कारण चुनावी राजनीति में लाभार्थी वर्ग एक अलग वोट बैंक के रूप में नजर आने लगा है। इस वर्ग में सबसे ज्यादा हितग्राही पीएम आवास के हैं। मैनकी सर्वेज नाम की चुनावी विश्लेषण एजेंसी के मुताबिक यूपी में योगी सरकार के दोबारा सत्ता में वापसी के पीछे पीएम आवास बड़ा मामला था। यूपी ने इसमें सबसे अच्छा काम किया है। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने जिस स्तर की प्लानिंग करके पीएम आवास को बड़ा मुद्दा बनाया है उस हिसाब से यह एक बड़ा राजनीतिक मसला बन चुका है। वहीं भाजपा के नितिन नबीन कह ही चुके हैं कि वे इसे चुनावी मुद्दा बनाएंगे। तब साफ है, पीएम आवास का मुद्दा बड़ा फैक्टर है। भूपेश सरकार ने 3268 करोड़ का आवंटन कर दिया है, लेकिन इस पर केंद्र से स्वीकृत आते और मकान एलॉकेशन का आधार तय करते तक 2-3 महीने बीत जाएंगे। फिर बारिश का समय और तुरंत बाद चुनाव हैं। तो बघेल सरकार पीएम आवास पर भाजपा का बनाया गया नरैशन तोड़ पाए इसमें शक है। लोगों को जब तक मकान बनते हुए नहीं दिखेंगे तब तक पीएम आवास को लेकर पलड़ा भाजपा के पाले में झुका रहेगा।

 
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