Paramhans_Shrirambabajee: श्रीराम बाबाजी के पंचमंत्र, जीवन को करेंगे स्वतंत्र, 105 दिनों की यात्रा, भरपूर आनंद की मात्रा

Paramhans_Shrirambabajee: श्रीराम बाबाजी के पंचमंत्र, जीवन को करेंगे स्वतंत्र, 105 दिनों की यात्रा, भरपूर आनंद की मात्रा
Modified Date: December 12, 2025 / 05:46 pm IST
Published Date: December 12, 2025 5:46 pm IST

बरुण सखाजी श्रीवास्तव

(पंचमंत्रों में विनम्रता या कृतज्ञता, संतोष, क्षमा, प्रेम और निर्भेद हो जाने के लिए 21-21 दिनों की श्रेणीबद्ध यात्रा का क्रम शामिल है। 105 दिनों की इस यात्रा में अपनी हर मानसिक गतिविधि को लिखें ताकि अंहकार न झांक पाए।)

मनोविज्ञान और आध्यात्मिक विज्ञान में एक हद तक समानता है। आध्यात्मिकता गहरे जाकर ईश्वर की ओर जाती है, मनोविज्ञान बुद्धि में उलझकर संसार में ही चक्रवलय का शिकार हो जाता है। लेकिन दोनों की शुरुआत और एक सीमा तक रास्ता एक जैसा होता है। आध्यात्मिक चिंतक सतीश सिंह से मुलाकात में इस तरह के वलय और निर्वलय पर विस्तार से चर्चा हुई। इस चर्चा के सारभूत 5 बिंदु हैं। इन 5 बिंदुओं को गहराई से देखा, समझा और जाना तो यही सब परमहंस हनुमानजी श्रीराम बाबाजी का संदेश था।

परमहंस श्रीराम बाबाजी अपने चैतन्य भौतिक पराभूमि पर जब तक रहे तब तक इन बिंदुओं के अभ्यास की प्रेरणा देते रहे। हम इन्हें अलग ढंग से डिकोड करते हैं और यह संदेशपूर्ण अलग ढंग से हैं। ये 5 बिंदु हैं कृतज्ञता, संतोष, क्षमा, प्रेम और निर्भेद। कृतज्ञता जो मिला उसके मिलने के लिए धन्यवाद और जो नहीं मिला वह था ही नहीं हमारा इसलिए उसकी अपेक्षामुक्ति। संतोष मतलब जो है वह बहुत है, कम नहीं। क्षमा अहंकार के घावों की सबसे कारगर दवा है। सबको क्षमा कर देना। चौथा है प्रेम यानी सबके प्रति सिर्फ और सिर्फ प्रेम होना। पांचवां और आखिरी बिंदु है निर्भेद हो जाना। भेदों से परे हो जाना। भेदों से परे होने के लिए जीवन के जीवन खट जाते हैं, मगर हमारे मन के भेद खत्म नहीं हो पाते। अब इन पांचों बिंदुओं को विस्तार से समझते हैं।

पहला है कृतज्ञता। इसका अर्थ है जो मिला उसके लिए धन्यवाद देना। जब यह हृदय से निकलने लगे तब असल में कृतज्ञ या विनम्र भाव मानिए। इसे करने के लिए 21 दिनों तक प्रतिदिन 5 नई-नई चीजें जो हमे मिली हैं उनके लिए देने वाले के प्रति धन्यवाद लिखकर प्रकट करें। जैसे हे वृक्ष वृंद आपका आभार आपने मुझे सांसें दी। हे दुकानदार आपने मुझे मेरी पसंद की सामग्री दी, हे शत्रु आपने मुझे शत्रु बनाया। आदि-आदि। इस अभ्यास से यह जीवन में उतर जाएगा। परमहंस श्रीराम बाबाजी मुंह से किसी को धन्यवाद नहीं बोलते थे, क्योंकि वे औपचारिकता में पड़ते ही नहीं थे। लेकिन आशुतोष स्वभाव के परमहंस श्रीराम बाबाजी उसे भरपूर आशीष देते थे।

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दूसरा है संतोष। जब 21 दिन कृतज्ञता के पूरे हो जाएं तो अगले 21 दिन संतोष पर केंद्रित करना चाहिए। इन 21 दिनों तक रोज 5 चीजें जो हैं उन्हें कहिए बहुत हैं, पर्याप्त हैं। आनंद लीजिए और लिखिए डायरी में। ध्यान रखें 21 दिन तक हर रोज 5 ऐसी चीजें नई खोजना है, रिपीट नहीं होना चाहिए। महाराजजी के शब्दकोष में अरे यार, ऐसा होता तो कैसा होता टाइप के वाक्य नहीं होते। यही सतोष का संदेश है।

तीसरा है क्षमा। यह सबसे कठिन है। क्योंकि हमने ही दोषी माना है और हमने ही सजा मुकर्रर की है और अब हम ही क्षमा करेंगे। इसके लिए भी 21-21 दिन जब कृतज्ञता, संतोष के पूरे हो जाएं तो अगले 21 दिन क्षमा किया लिखिए। इन्हें किया उन्हें क्षमा किया और सोचिए जिनसे आपको अतिघृणा हो उन्हें क्षमा किया लिखिए। परमहंस श्रीराम बाबाजी का ध्यान लगाइए। वे एक पल में अंगारा दूसरे ही पल में हिम के समान शीतल हो जाते थे। फिर भूल जाते थे, किसने क्या किया। यह क्षमा है।

चौथा है प्रेम। जब हम 21 दिन विनम्रता, 21 दिन संतोष और 21 दिन क्षमा यानी 63 दिन के मनोव्रत हो जाएं तो चौथा व्रत प्रेम अपने आप ही जन्म लेगा। हर रोज 5 ऐसे तत्वों, लोगों, वस्तुओं के प्रति प्रेम लिखकर प्रकट करना है जिन्होंने संसार को खूबसूरत बनाया है। ध्यान रखिए प्रेम का अर्थ मोह, लाल, सुख नहीं। यह निस्वार्थ है। भीतर से स्वतः ही सुगंध देने वाला भाव होता है। परमहंस श्रीराम बाबाजी बंदरों, कौओं, कुत्तों, गायों, मछलियों को विशेष प्रेम करते थे। ये वही स्थिति है।

पांचवां है निर्भेद। यह ईश्वरीय अवस्था है। परमहंस श्रीराम बाबाजी इसी अवस्था में प्रकट हनुमानजी थे। भौतिक शरीरमय, मनमय, प्राणमय, आनंदमय, विज्ञानमय सर्वकोषमय ईश्वर। न शरीर का मोह, न मोक्ष की अपेक्षा, न प्राप्ति का आदर न अप्राप्ति का खेद, न प्रसिद्धि का उपक्रम न सिद्धि की क्रिया। सर्वमय हो जाना। 21-21 दिन की चार क्रियाओं के बाद 84 दिन हो जाते हैं। अर्थात 84 लाख योनियों का सफर हुआ। तब हम उपलब्ध होते हैं पांचवीं श्रेणी निर्भेद को। निर्भेद ब्रह्म, विष्णु, महेश, सतो, रजो, तमो गुण, प्रोटोन, पॉजीटॉन, न्यूट्रॉन से परे हो जाते हैं। स्त्री, पुरुष, ब्रह्म, अब्रह्म, बुरा, सही, अच्छा, गलत, है, नहीं है, ये, वो, सब से मुक्त। सबसे ऊपर राम को प्राप्त हो जाते हैं। राममय हो जाते हैं। राम ही हो जाते हैं। किसी ईश्वर की कोई अलग व्याख्या, परिभाषा नहीं। सिद्धांततः आदिशंकराचार्य का सर्वसिद्ध सिद्धांत अद्वैत तक पहुंच जाना। पांचवीं क्रिया के लिए भी 21 दिन आरक्षित कीजिए। मानिए आप सब ब्रह्म देख रहे हैं। रोज 5 ऐसी चीजों को लिखिए, करिए, सोचिए, समझिए।

105 दिन की इस यात्रा का अभ्यास हमे परमहंस श्रीराम बाबाजी के चरणों में सदा-सदा का अनुरागी बना देगा। इसे ही ईश्वरीय प्रकाश या प्राकट्य कहा जाता है। फिर हम पाखंडों से परे हो जाएंगे। परमहंस श्रीराम बाबाजी के सच्चे भक्तभाव को प्राप्त हो जाएंगे। गुरु के जिस लाल की तलाश थी उसके योग्य हो जाएंगे। हम हम नहीं रहेंगे, निर्भेद, मुक्त, प्रत्यक्ष, प्रमाण, सरल हो जाएंगे। करके देखते हैं। मैं भी आप भी।

(आगे पढ़िए प्रेम और मोह के बीच का फर्क)

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Associate Executive Editor, IBC24 Digital