मातृशक्ति जागरण की ममतामयी प्रेरणा थीं प्रमिल ताई

मातृशक्ति जागरण की ममतामयी प्रेरणा थीं प्रमिल ताई
Modified Date: August 2, 2025 / 05:52 pm IST
Published Date: August 2, 2025 5:52 pm IST

मातृशक्ति जागरण की ममतामयी प्रेरणा थीं प्रमिल ताई

भारत दुनिया का इकलौता राष्ट्र है जिसके प्रादुर्भाव को किसी तिथि में व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह शाश्वत है, जिसकी प्राण प्रतिष्ठा भारत मां के रूप में हुई है। भारत मां के आंचल में ऐसी अनेक विभूतियां हुई हैं, जिन्होंने भारत एवं भारतीयता के लिए जीवन खपा दिया। प्रमिल ताई मेढ़े मातृशक्ति का ऐसा ही एक आदर्श व्यक्तित्व हैं जिन्होंने संपूर्ण जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। 8 जून 1929 को महाराष्ट्र के नंदुरबार में जन्मीं प्रमिल ताई ने बीए (स्नातक) की पढ़ाई पूरी करने के बाद शिक्षक प्रशिक्षण (बीटी) पूरा किया। उन्होंने नागपुर के सीपी एंड बरार उच्च माध्यमिक विद्यालय में दो वर्ष अध्यापन कार्य किया। इसके बाद वह वरिष्ठ अंकेक्षक (ऑडिटर) के रूप में शासकीय सेवा में भी रहीं, लेकिन राष्ट्र सेविका समिति के कार्य के लिए कार्यकाल से 12 वर्ष पूर्व ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लिया। राष्ट्र सेविका समिति की शाखा स्तर के दायित्व से लेकर उन्होंने क्रमश: नगर, विभाग, प्रांत व अखिल भारतीय दायित्व संभाले। 1950 से 1964 तक वे विदर्भ प्रांत की कार्यवाहिका रहीं। सन् 1965 से 1975 तक केन्द्रीय कार्यालय प्रमुख, 1975 से 1978 तक आन्ध्र प्रदेश की पालक अधिकारी, 1978 से 2003 तक 25 वर्ष का लम्बा कालखण्ड उन्होंने समिति की अखिल भारतीय प्रमुख कार्यवाहिका का दायित्व निर्वहन करते हुए पूर्ण किया। फरवरी 2003 से सह प्रमुख संचालियका एवं 2006 से 2012 तक प्रमुख संचालिका रहीं।

राष्ट्र सेविका समिति के नवीन प्रधान कार्यालय के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। समिति के कार्य को विस्तार देने के लिए उन्होंने इंग्लैण्ड, अमेरिका, कनाडा, डरबन आदि देशों का प्रवास भी किया। “वयं विश्वशान्त्यै चिरं यत्नशीलाः” नामक पुस्तक में उन्होंने अपने विश्व विभाग प्रवास के अनुभव लिखे हैं। सामाजिक जागरण एवं स्त्री नवोन्मेष को लेकर किए गए उनके कार्यों की सराहना भी खूब हुई। अमरीका में न्यूजर्सी शहर के महापौर द्वारा इन्हें मानद नागरिकता भी प्रदान की गई। फरवरी, 2003 से उन पर समिति की सह प्रमुख संचालिका का दायित्व आया। इस दायित्व पर रहते हुए उन्होंने वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर उपाख्य मौसी जी के जन्मशताब्दी वर्ष में 2 अगस्त 2003 से 2 मई 2004 तक 266 दिनों की भारत परिक्रमा मौसी जी की जीवन-प्रदर्शनी के साथ की। कन्याकुमारी से लेकर नेपाल, जम्मू-कश्मीर एवं जूनागढ़ से लेकर इंफाल तक इस कठिन यात्रा में उन्होंने लगभग 28,000 किमी की यात्रा कर संपूर्ण देश को स्त्री शक्ति के संगठन व जागरण का महामंत्र दिया। इस यात्रा के दौरान उम्र के सातवें दशक में होने के बाद भी बारिश, ठंड एवं ग्रीष्म हर मौसम में परिस्थिति कैसी भी रही हो उन्होंने प्रवास नहीं छोड़ा। लगभग 107 स्थानों पर उन्होंने प्रवास किया एवं कार्यक्रम में कभी उनकी वजह से कोई बदलाव नहीं करना पड़ा।

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वंदनीय मौसी जी प्रमिल ताई का बौद्धिक अत्यंत प्रेरक होता था। बिलासपुर में राष्ट्र सेविका समिति द्वारा 1997 में स्थापित तेजस्विनी कन्या छात्रावास का निर्माण उनके मार्गदर्शन से हुआ। आदरणीय बापट जी तत्कालीन विभाग व्यवस्था प्रमुख श्री काशीनाथ गोरे जी भी अक्सर इस बात को कहा करते थे कि यह प्रकल्प यदि मूर्त रूप ले पाया तो इसके पीछे प्रमिल ताई का समन्वय व प्रेरणा थी। वह इस प्रकल्प की वार्षिक आमसभा बैठक में सहभागी होने के लिए प्रत्येक वर्ष जुलाई में बिलासपुर आया करती थीं। प्रमिल ताई 1972 में पहली बार वंदनीय मौसी जी के साथ जशपुर प्रवास पर छत्तीसगढ़ आईं थी।

अध्ययन में उनकी विशेष रुचि थी। उनकी प्रेरणा से समिति की बहनों द्वारा राष्ट्र भक्ति, स्वदेशी, परिवार प्रबोधन विषय पर कई गीत लिखे गए। हिन्दी और मराठी के साथ ही अंग्रेजी में भी उनकी विशेष दक्षता थी। इससे विदेशों में प्रवास में उन्हें अनुकूलता हुई। वंदनीय मौसी जी ने राष्ट्र सेविका समिति का जो पौधा रोपा उसे सुदृढ़ करने का कार्य प्रमिल ताई द्वारा किया गया। उनके प्रयासों से महिला समन्वय का कार्य खड़ा हुआ। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के विचार परिवार से जुड़ी मातृशक्ति को एक मंच पर लाने का कार्य हुआ। इससे समाज जीवन तथा राष्ट्र कार्य में मातृशक्ति की भूमिका को प्रोत्साहन मिला। नारी जागरण को लेकर उनके कृतित्व पर एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय मुंबई द्वारा उन्हें डी लिट् भी प्रदान किया गया। आजीवन वह कृति रूप में तो लोगों को प्रेरित करती ही रहीं, 31 जुलाई को देवलोकगमन के पश्चात उनका देहदान का संकल्प भी धन्य तुम्हारा जीवनदान शब्द को चरितार्थ कर गया।

~ जया लक्ष्मी तिवारी
Disclaimer- आलेख में व्यक्त विचारों से IBC24 अथवा SBMMPL का कोई संबंध नहीं है। हर तरह के वाद, विवाद के लिए लेखक व्यक्तिगत तौर से जिम्मेदार हैं।


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