कौन है हिड़मा….क्यों चर्चा में है..नक्सली कमांडर हिडमा..

कौन है हिड़मा....क्यों चर्चा में है..नक्सली कमांडर हिडमा..

कौन है हिड़मा….क्यों चर्चा में है..नक्सली कमांडर हिडमा..
Modified Date: November 29, 2022 / 03:15 am IST
Published Date: March 24, 2020 11:32 am IST

बीते शनिवार को सुकमा जिले के चिंतागुफा थाना क्षेत्र के मिनपा-कसलपाड़ के जंगल में ऑपरेशन प्रहार-2 के दौरान डी आर जी और एस टी एफ के 17 जवानों की शहादत का जिम्मेदार जिस नक्सली कमाण्डर को माना जा रहा है,उस पर छत्तीसगढ़ पुलिस ने 25 लाख रुपये का ईनाम घोषित कर रखा है..हिड़मा ,छत्तीसगढ़ का मोस्ट वांटेड नक्सली है।

हिड़मा जिसका पूरा नाम..माड़वी हिड़मा..है कई और नामों से भी जाना जाता है ,हिड़मा उर्फ संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडियाम भीमा। मोस्ट वांटेड की सूची में टॉप इस नक्सली की कद काठी कोई खास आकर्षक नहीं…बल्कि यह कद में नाटा और दुबला-पतला है,जैसा कि सुरक्षा बलों के पास उपलब्ध पुराने फोटो में दिखाई देता है..ये बात अलग है कि बस्तर के माओवादी आंदोलन में शामिल स्थानियों की तुलना में उसका माओवादी संगठन में कद काफी बड़ा है…वर्ष 2017 में अपने बलबूते और रणनीतिक कौशल के साथ नेतृत्व करने की क्षमता के कारण सबसे कम उम्र में माओवादियों की शीर्ष..सेन्ट्रल कमेटी …का मेम्बर बन चुका है।माओवादियों के इस आदिवासी चेहरे को छोड़कर नक्सलगढ़ ..दण्डकारण्य ..में बाकी कमाण्डर्स आंध्रप्रदेश या अन्य राज्यों के हैं।

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आखिर हिड़मा कैसे यहां तक पहुंचा ,इस सवाल का जबाब वो इलाका है ,जहां से वो आता है…हिड़मा ..का गांव पुवर्ती बताया जाता है,जो सुकमा जिले के जगरगुण्डा जैसे दुर्गम जंगलों वाले इलाके में स्थित है..यह गांव जगरगुण्डा से 22 किलोमीटर दूर दक्षिण में है,जहां पहुंचना बहुत मुश्किल है।ये वो इलाका है,जहां पिछले 15-20 सालों से स्कूल नहीं लगा है।यहां सिर्फ..नक्सलियों की जनताना सरकार…का शासन चलता है।नक्सलियों ने यहां अपने तालाब बनवाये हैं,जिनमें मछली पालन होता है,गांवों में सामूहिक खेती होती है। हिड़मा की उम्र यदि 40 साल के आसपास भी मान ली जाए,तो वो ऐसे समय और स्थान पर पैदा हुआ,जहां उसने सिर्फ माओवादियों और उनके शासन को देखा और ऐसे ही माहौल में वो पला-बढ़ा और पढ़ा…हालांकि वो सिर्फ 10 वीं तक ही पढ़ा है,लेकिन अध्ययन की उसकी आदत ने उसे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में अभ्यस्त बना दिया,अंग्रेजी साहित्य के साथ माओवादी और देश-दुनिया की जानकारी हासिल करने में उसकी खासी रुचि है।

हिड़मा की पहचान का सबसे बड़ा निशान उसके बाएं हाथ की एक अंगुली ना होना है।हमेशा नोटबुक साथ में लेकर चलने वाला ये दुर्दांत नक्सली समय-समय पर अपने नोट्स भी तैयार करता है।

वर्ष 1990 में मामूली लड़ाके के रुप में माओवादियों के साथ जुड़ने वाला यह आदिवासी सटीक रणनीति बनाने और तात्कालिक सही निर्णय लेने की क्षमता के कारण बहुत ही जल्दी एरिया कमाण्डर बन गया था। वर्ष 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ को घेरकर 76 जवानों की जान लेने में भी हिड़मा की मुख्य भूमिका रही।इसके 3 साल बाद 2013 में जीरम हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं सहित 31 लोगों की जान लेने वाली नक्सली घटना में भी हिड़मा शामिल था। वर्ष 2017 में  बुरकापाल में हमला कर सीआरपीएफ के 25 जवानों की शहादत का जिम्मेदार भी इसी ईनामी नक्सली को माना जाता है।खुद ए के -47 रायफल लेकर चलने वाला हिड़मा चार चक्रों की सुरक्षा से घिरा रहता है।

प्रहार-2 के तहत नक्सलियों के टीसीओसी (टेक्टिकल काउन्टर ऑफेन्सिव कैम्पन) को ध्वस्त करने के इरादे से फोर्स रोजाना जंगल में घुस रही थी और खुफिया जानकारी में हिड़मा की उपस्थिति के कारण फोर्स मिनपा के जंगल में घुसी और दो जगह मुठभेड़ में गोलीबारी के बाद जब फोर्स लौट रही थी तब रेंगापारा में डेढ़ किलोमीटर लम्बे नक्सलियों के एम्बुश में फंस गयी,ऐसे समय में जब सीआरपीएफ की कोबरा बचाव के लिए पहुंचने वाली थी,तब नक्सलियों की गोलीबारी के कारण कोबरा पहाड़ से नीचे नहीं उतर पायी,यदि कोबरा नीचे उतरती तो शायद हिड़मा ,फोर्स को और ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता था।


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