डीपीआईआईटी समिति एआई-निर्मित सामग्री की कॉपीराइट क्षमता पर लाएगी दूसरा कार्य-पत्र

डीपीआईआईटी समिति एआई-निर्मित सामग्री की कॉपीराइट क्षमता पर लाएगी दूसरा कार्य-पत्र

डीपीआईआईटी समिति एआई-निर्मित सामग्री की कॉपीराइट क्षमता पर लाएगी दूसरा कार्य-पत्र
Modified Date: December 11, 2025 / 04:54 pm IST
Published Date: December 11, 2025 4:54 pm IST

नयी दिल्ली, 11 दिसंबर (भाषा) उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) की कृत्रिम मेधा एवं कॉपीराइट से जुड़े मुद्दों की समीक्षा करने वाली समिति अगले दो माह में अपना दूसरा कार्य-पत्र जारी करेगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

डीपीआईआईटी की अतिरिक्त सचिव और समिति की अध्यक्ष हिमानी पांडे ने कहा कि यह दस्तावेज एआई की मदद से तैयार की गई सामग्री की कॉपीराइट योग्यता और उसकी लेखकता से जुड़े प्रश्नों पर आधारित होगा।

समिति का पहला कार्य-पत्र आठ दिसंबर को जारी किया गया था। उसमें एआई डेवलपरों को सभी कानूनी रूप से उपलब्ध कॉपीराइट-सुरक्षित सामग्री का उपयोग कर एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए अनिवार्य ‘व्यापक लाइसेंस’ देने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके बदले में कॉपीराइट धारकों को कानूनी रूप से सुनिश्चित पारिश्रमिक अधिकार देने की सिफारिश की गई है।

 ⁠

डीपीआईआईटी ने इस पहले कार्य-पत्र पर सभी संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं।

विभाग की तरफ से 28 अप्रैल, 2025 को गठित आठ सदस्यीय समिति में कानूनी जानकार, उद्योग जगत और शिक्षाविदों के प्रतिनिधि शामिल हैं। समिति को एआई से पैदा होने वाली नई चुनौतियों की पहचान करने, मौजूदा कॉपीराइट कानूनों की समीक्षा करने, उसकी पर्याप्तता का आकलन करने और जरूरी संशोधन सुझाने की जिम्मेदारी दी गई है।

पांडे ने कहा, “दूसरा कार्य-पत्र एआई से तैयार सामग्री के कॉपीराइट, उनके लेखकीय अधिकार और एआई-निर्मित कार्यों में परिवर्तनकारी तत्व कितने मजबूत हैं, इन विषयों पर केंद्रित होगा।”

पहले कार्य-पत्र के मुताबिक, ‘जनरेटिव एआई’ समाज के लिए बड़ी परिवर्तनकारी क्षमता रखता है, लेकिन जिस तरीके से एआई प्रणाली में अक्सर कॉपीराइट-सुरक्षित सामग्री का बिना अनुमति उपयोग किया जा रहा है, उससे कॉपीराइट कानून को लेकर गंभीर बहस खड़ी हुई है।

यह दस्तावेज कहता है कि मुख्य चुनौती यह सुनिश्चित करने की है कि मानव-निर्मित रचनाओं का संरक्षण हो, लेकिन साथ ही प्रौद्योगिकी उन्नति भी बाधित न हो।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण


लेखक के बारे में