सरकार ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने, खाद्यतेल आयात कम करने के लिए अभियान शुरू किया

सरकार ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने, खाद्यतेल आयात कम करने के लिए अभियान शुरू किया

सरकार ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने, खाद्यतेल आयात कम करने के लिए अभियान शुरू किया
Modified Date: March 4, 2024 / 08:08 pm IST
Published Date: March 4, 2024 8:08 pm IST

नयी दिल्ली, चार मार्च (भाषा) केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने सोमवार को कहा कि सरकार ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने और खाद्यतेल आयात को कम करने के लिए अभियान शुरू किया है।

मंत्री ने असम के गोगामुख स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में प्रशासनिक-सह-शैक्षणिक भवन, मानस गेस्ट हाउस, सुबनसिरी गर्ल्स हॉस्टल और ब्रह्मपुत्र बॉयज हॉस्टल का ‘ऑनलाइन’ उद्घाटन किया।

इस मौके पर केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी भी मौजूद थे। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), में एक प्रदर्शनी स्टाल का दौरा किया।

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एक सरकारी बयान के अनुसार, मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास पर विशेष जोर है।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में कृषि के विकास की खामियों को दूर कर उन्हें मुख्यधारा में लाने का काम किया है।

मुंडा ने कहा कि सरकार वर्ष 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प के साथ काम कर रही है, जिसमें कृषि की भूमिका काफी अहम है।

उन्होंने कहा कि खाद्य तेल आयात के बोझ को कम करने और तिलहन में आत्मनिर्भर बनने के लिए 11,000 करोड़ रुपये का मिशन चलाया जा रहा है।

मुंडा ने कहा, ‘‘हमें इस सोच के साथ काम करना होगा कि आने वाले दिनों में हम आयात नहीं बल्कि निर्यात करेंगे।’’

घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारत सालाना लगभग 1.6 करोड़ टन खाद्य तेलों का आयात करता है। मूल्य के संदर्भ में, भारत ने वर्ष 2022-23 (नवंबर-अक्टूबर) के दौरान लगभग 1.38 लाख करोड़ रुपये के खाद्य तेलों का आयात किया।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों के विकास पर भी जोर दिया। उन्होंने कृषि शिक्षा को आजीविका और रोजगार के अवसरों से जोड़ने की बात कही।

मुंडा ने कहा कि जैव विविधता अध्ययन पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि एक साल में यह संस्थान शोध के लिए सबसे पसंदीदा विकल्प होगा।

उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकियों को जलवायु-तटस्थ होना चाहिए।

चौधरी ने वैज्ञानिकों से पूर्वोत्तर क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक विविधता का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने दालों और तिलहनों से जुड़े शोध पर ध्यान देने को कहा ताकि देश को दालों के आयात पर ज्यादा पैसा खर्च न करना पड़े।

भाषा राजेश राजेश रमण

रमण


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