पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सेबी बोर्ड ने म्यूचुअल फंड नियमों में बड़े बदलाव को मंजूरी दी
पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सेबी बोर्ड ने म्यूचुअल फंड नियमों में बड़े बदलाव को मंजूरी दी
मुंबई, 17 दिसंबर (भाषा) बाजार नियामक सेबी ने बुधवार को पारदर्शिता बढ़ाने के लिए म्यूचुअल फंड नियमों में व्यापक बदलाव को मंजूरी दी। इसमें व्यय अनुपात ढांचे और ब्रोकरेज शुल्क की सीमाओं में बदलाव शामिल हैं।
इन प्रस्तावों का मकसद नियामकीय स्पष्टता लाना, अनावश्यक दोहराव को कम करना और अनुपालन को आसान बनाना है।
सेबी प्रमुख तुहिन कांत पांडेय ने यहां संवाददाताओं को बताया कि बोर्ड बैठक में सेबी ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसके तहत सभी वैधानिक शुल्क – एसटीटी (प्रतिभूति लेनदेन शुल्क), जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), सीटीटी (जिंस लेनदेन कर) और स्टांप शुल्क – को व्यय अनुपात की सीमा से बाहर रखा जाएगा। इसके साथ ही ब्रोकरेज, एक्सचेंज और नियामकीय शुल्क से संबंधित मौजूदा खर्च भी इससे बाहर होंगे।
इसके अलावा, इस व्यय अनुपात सीमा को अब ‘बुनियादी खर्च अनुपात’ कहा जाएगा। इस समय प्रबंधन शुल्क पर लगने वाला जीएसटी को छोड़कर अन्य सभी वैधानिक शुल्क म्यूचुअल फंड योजनाओं के लिए निर्धारित टीईआर (कुल व्यय अनुपात) सीमा के भीतर शामिल होते हैं।
प्रस्तावित बदलाव के तहत व्यय अनुपात की सीमा को वैधानिक शुल्क से अलग रखा जाएगा, ताकि भविष्य में वैधानिक शुल्क में होने वाला कोई भी बदलाव सीधे निवेशकों तक पहुंच सके। इसके साथ ही बोर्ड ने परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) द्वारा म्यूचुअल फंड योजनाओं पर पहले से दिए गए अतिरिक्त पांच बेसिस प्वाइंट (बीपीएस) शुल्क को खत्म करने का फैसला किया है।
यूनिटधारकों के लिए लागत को तर्कसंगत बनाने के लिए इस खर्च को हटाने का फैसला लिया गया है। निवेशकों के हितों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनसे केवल एक बार ही उचित रूप से खर्च वसूला जाए, ब्रोकरेज शुल्क को नकद बाजार लेनदेन के लिए 0.12 प्रतिशत से घटाकर 0.06 प्रतिशत और डेरिवेटिव लेनदेन के लिए 0.05 प्रतिशत से घटाकर 0.02 दो प्रतिशत कर दिया गया है।
इसके अलावा, नियामक ने कहा कि योजना के प्रदर्शन के आधार पर व्यय अनुपात वसूलने का प्रावधान भी पेश किया गया है, जो एएमसी के लिए स्वैच्छिक होगा।
भाषा पाण्डेय रमण
रमण

Facebook



