मिश्रित सिंथेटिक कपड़ा क्षेत्र में कमजोरी से परिधान निर्यात पर असरः रिपोर्ट |

मिश्रित सिंथेटिक कपड़ा क्षेत्र में कमजोरी से परिधान निर्यात पर असरः रिपोर्ट

मिश्रित सिंथेटिक कपड़ा क्षेत्र में कमजोरी से परिधान निर्यात पर असरः रिपोर्ट

:   Modified Date:  February 27, 2024 / 03:24 PM IST, Published Date : February 27, 2024/3:24 pm IST

नयी दिल्ली, 27 फरवरी (भाषा) विकसित देशों में मिश्रित सिंथेटिक्स से बने कपड़ों की मांग बढ़ने के बीच भारतीय परिधान उद्योग के इस मोर्चे पर कमजोर होने से वैश्विक निर्यात में हिस्सेदारी घटी है। एक रिपोर्ट में यह आकलन पेश किया गया है।

शोध संस्थान ‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव’ (जीटीआरआई) ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि कमजोर सिंथेटिक्स के कारण भारत का परिधान उद्योग सही तरह से आगे नहीं बढ़ पा रहा है।

इसके मुताबिक, सिंथेटिक्स ने कपास को पीछे छोड़ दिया है और अब यह फैशन उद्योग का पसंदीदा बन गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘विकसित देशों द्वारा खरीदे जाने वाले 70 प्रतिशत कपड़े मिश्रित सिंथेटिक्स से बने होते हैं। लेकिन भारतीय निर्यात में उनकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से कम है और यही भारत के कमजोर परिधान निर्यात का प्रमुख कारण है।’’

जीटीआरआई ने कहा कि अब अधिकांश औपचारिक, खेल एवं फैशन परिधानों में सिंथेटिक कपड़ों का उपयोग होता है। वे टिकाऊ होते हैं, फीके नहीं पड़ते हैं और ऊन, कपास या रबड़ के साथ उनका आसानी से मिश्रण किया जा सकता है।

विश्वस्तर पर कपास से बने कपड़ों की बिक्री बसंत और गर्मियों के मौसम में अधिक होती है जबकि सिंथेटिक्स और मिश्रण वाले कपड़े शरद ऋतु और सर्दियों के मौसम में अधिक बिकते हैं।

रिपोर्ट कहती है कि सूती परिधान बनाने के लिए भारतीय कारखाने साल में छह महीने चलते हैं। लेकिन उसे पूरे साल की निर्धारित लागत का किराया, न्यूनतम कर्मचारियों के लिए वेतन, ऋण पर ब्याज आदि का भुगतान करना पड़ता है। इससे उन कारखानों में बना उत्पाद महंगा हो जाता है।

वर्ष 2023 में भारत का परिधान निर्यात 14.5 अरब डॉलर था जो चीन (114 अरब डॉलर), यूरोपीय संघ (94.4 अरब डॉलर), वियतनाम (81.6 अरब डॉलर) और बांग्लादेश (43.8 अरब डॉलर) से काफी कम है।

भाषा प्रेम प्रेम अजय

अजय

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)