CM Sai Exclusive Interview in IBC24: प्रभु श्री राम छत्तीसगढ़ के भांचा ही नहीं…जनजातीय समाज से भी है गहरा नाता, सीएम साय ने IBC24 पर किया खुलासा
CM Sai Exclusive Interview in IBC24: प्रभु श्री राम छत्तीसगढ़ के भांचा ही नहीं...जनजातीय समाज से भी है गहरा नाता, सीएम साय ने IBC24 पर किया खुलासा
रायपुरः CM Sai Exclusive Interview in IBC24 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा होने को है। जिसको लेकर अब भगवान श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में अभी से उत्सव शुरू हो गया है। पूरा प्रदेश राममय हो गया है। प्राण प्रतिष्ठा को लेकर आज सीएम विष्णुदेव साय ने आईबीसी 24 से रूबरू हुए।
इस मौके पर आज आईबीसी 24 के एसोसिएट कार्यकारी संपादक बरुण सखाजी ने सीएम साय का एस्कूसीव बातचीत किया। सीएम साय ने बताया कि छत्तीसगढ़ में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर क्या प्लान है।
छत्तीसगढ़ में किस तरह से जुड़ते हैं राम?
500 संघर्षों के बाद ये सौभाग्य मिला है कि अयोध्या में श्री राम का मंदिर बन रहा है और आने वाला 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा है। पूरा देश राममय हो गया है लेकिन हमारा छत्तीसगढ़ में ज्यादा उत्साह है। प्रदेश में इसलिए ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है कि छत्तीसगढ़ भगवान राम का नलिहाल है। माता कौश्लया का जन्म यहीं हुआ था। इसलिए भगवान राम को छत्तीसगढ़ वासी अपना भांजा मानते हैं। 22 जनवरी को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो छत्तीसगढ़ वालों को दोगुना खुशी भी हैं। पूरा प्रदेश का वातावरण राममय हो गया है। लोग अलग अलग जगह मंदिरों की सफाई कर रहे हैं, मंदिरों की पूजा कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ से 3000 टन चांवल भी अयोध्या में भंडारा के लिए भेजा गया है, सब्जि भेजा गया है। यहां से भक्तों की सेवा के लिए डॉक्टर भी गए हैं। भगवान राम का छत्तीसगढ़ का बहुत ही गहरा लगाव है।
जनजातिय समाज से राम का नाता कैसा है?
सीएम साय ने कहा कि जनजातिय समाज से मैं खुद हूं और जनजातिय समाज बड़ा सरल स्वाभाव का होता है। जिस तरह से तृत्या युग में भगवान के वनवास को हम जब देखते हैं रामायण में तो चित्रकुट पहुंचे तो आदिवासी समाज ने उनका ख्याल रखा। रामचरित मानस के मुताबिक जब प्रभु श्रीराम वनवास के पहले चरण में चित्रकूट में निवास करने पहुंचे तो देवताओं से लेकर सभी लोग उनके दर्शन करने पहुंचे और उनके सामने अपनी- अपनी पीड़ा कही। प्रभु श्रीराम तो राम हैं, उन्होंने सबकी पीड़ा सुनी और हल करने का आश्वासन दिया। किसी ने कहा रावण के कारण हम यज्ञ नहीं कर पाते, किसी ने कहा रावण ने हमारा राज-काज लूट लिया। परंतु इनमें से किसी ने भी यह नहीं सोचा, वनवासी राम रहेंगे कहा, खाएंगे क्या, उन्हें वनक्षेत्र में असुविधाओं से कैसे बचाएंगे। यह सोचा जनजातिय समाज ने। तुलसीदास जी ने लिखा है।
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यह सुधि कोल किरातन्ह पाई, हरषे जनु नव निधि घर आई।। कंद मूल फल भरि-भरि दोना, चले रंक जनु लूटत सोना।।
वनवास में राम जी के लिए भोजन, निवास की व्यवस्था। उनकी वून क्षेत्र में सुरक्षा, सुविधा की व्यवस्था जनजातिय समाज ने की। जनजातिय समाज के महत्व को इससे भी और बेहतर समझा जा सकता है, कि राम के दर्शन और सेवा के लिए देवताओं को भी जानजातिय देह धारण करना पड़ी। जैसा कि राम चरित मानस में उल्लेख है।

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