रायपुरः Who is Padmashree Usha Barle? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज छत्तीसगढ़ प्रवास पर हैं। इस दौरान अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे और कई अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल होंगे। वहीं, दुर्ग प्रवास के दौरान अमित शाह, पंडवानी गायिका उषा बारले से मुलाकात करेंगे। बता दें कि पंडवानी गायिका उषा बारले को पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। तो चलिए जानते हैं कौन हैं पद्मश्री उषा बारले?
Who is Padmashree Usha Barle? ऊषा बारले कापालिक शैली की पंडवानी गायिका हैं। 2 मई 1968 को भिलाई में जन्मी उषा बारले ने सात साल की उम्र से ही पंडवानी सीखनी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने तीजन बाई से इस कला की रंगमंच की बारीकियां भी सीखीं। पंडवानी छत्तीसगढ़ के अलावा न्यूयॉर्क, लंदन, जापान में भी पेश की जा चुकी है। गुरु घासीदास की जीवनी को पंडवानी शैली में सर्वप्रथम प्रस्तुत करने का श्रेय भी उषा बारले को ही जाता है।
बताया जाता है कि उषा बारले ने शुरुआती दौर में आर्थिक तंगी से दिन काटे हैं। उस समय को याद करती हैं तो उनकी आंखे नम हो जाती हैं। आर्थिक तंगी के दौर में उषा बारले गृहस्थी चलाने के लिए वह सेक्टर-1 की बस्ती में रहकर केला, संतरा व अन्य फल बेचा करती थी। वह खासा संघर्ष भरा दिन था। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। पंडवानी के अलावा अनेक लोक विधाओं में भी वह पारंगत है। भारत सरकार ने उन्हें पंडवानी के क्षेत्र में बेहतर काम के लिए पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना है।
पति ने पढ़ाई की और फिर आईटीआई किया। इसके बाद उनकी बीएसपी में नौकरी लगी। तब जाकर घर के हालात में सुधार हुआ। ईश्वर की कृपा से पंडवानी गायन के क्षेत्र में लगातार काम किया। इससे देश-विदेश में कार्यक्रम पेश करने का मौका भी मिला।
उषा बारले को राज्य सरकार द्वारा 2016 में गुरु घासीदास सम्मान दिया गया था। उषा बारले छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन से भी जुड़ी थीं। 1999 में अलग राज्य के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। उस प्रदर्शन का नेतृत्व दिवंगत नेता विद्याचरण शुक्ल कर रहे थे।
अमेरिका और लंदन के 20 से अधिक शहर में पंडवानी गायन पेश कर चुकी हैं। इसी तरह से भारत में रांची, असम, गुवाहाटी, गुना, भागलपुर, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, हैदराबाद, हरियाणा, कोलकाता, जयपुर में पंडवानी गायन से अपनी पहचान बना चुकी हैं।
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बता दें कि उषा बारले को 22 मार्च 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री से सम्मानित किया गया। ज्ञात हो कि गुरु घासीदास की जीवनगाथा को पहली बार पंडवानी शैली में पेश करने का श्रेय भी उषा बारले को जाता है। सात साल की उम्र से पंडवानी सीखना शुरू किया था। बाद में उन्होंने तीजन बाई से भी इस कला की मंचीय बारीकियां सीखीं।