(तस्वीरों सहित)
रायपुर, 24 दिसंबर (भाषा) भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
सांस लेने में तकलीफ के बाद शुक्ल को इस माह की दो तारीख को रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था, जहां मंगलवार शाम चार बजकर 48 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 89 वर्ष के थे।
शुक्ल की अंतिम यात्रा शैलेन्द्र नगर स्थित उनके निवास से निकली, जहां मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने उनका अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित कर नमन किया और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
मुख्यमंत्री साय ने शुक्ल के पार्थिव शरीर को कंधा देकर उन्हें अंतिम विदाई दी। उन्होंने शोक संतप्त परिजनों से मुलाकात कर अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त कीं और असंख्य पाठकों व साहित्य-प्रेमियों को इस अथाह दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करने की कामना की।
मुख्यमंत्री साय ने कहा, “छत्तीसगढ़ की माटी से उपजे महान साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के निधन से हिंदी साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची है। उनकी रचनाएं संवेदनशीलता, मानवीय सरोकारों और सरल किंतु गहन अभिव्यक्ति की अनुपम मिसाल हैं। शुक्ल की लेखनी ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां दीं। उनका साहित्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बना रहेगा।”
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक ऐसे सृजनशील व्यक्तित्व की अंतिम यात्रा थी, जिन्होंने साहित्य जगत को अनमोल कृतियां दीं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। साहित्यकार और कवि के विचार सदैव जीवित रहते हैं और उनकी कलम की स्याही शब्दों में अमर हो जाती है। शुक्ल का साहित्य हमारी सांस्कृतिक चेतना को दिशा देता रहेगा।’’
शुक्ल का अंतिम संस्कार बुधवार दोपहर बूढ़ा तालाब क्षेत्र स्थित मारवाड़ी श्मशान घाट में किया गया, जहां वरिष्ठ अधिकारी, साहित्यकार, पत्रकार और विभिन्न क्षेत्रों के लोग उपस्थित रहे। उनके पुत्र शाश्वत शुक्ल ने उन्हें मुखाग्नि दी।
देश के प्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास भी शुक्ल के आवास पहुंचे और संवाददाताओं से कहा कि विनोद कुमार शुक्ल का निधन भारतीय कविता में एक युग का अंत है।
उन्होंने कहा कि 1970 के दशक में जन्मे और 1980 के दशक में जिनकी साहित्यिक चेतना विकसित हुई, उनके लिए शुक्ल को पढ़ना और सुनना अपने आप में एक विशिष्ट अनुभव था।
डॉ. विश्वास ने कहा, “उनके निधन से भारतीय और हिंदी कविता को भारी क्षति हुई है। वह प्रचार से दूर रहे, एक शांत साधक की तरह जीवन जिया और उसी शांति से इस दुनिया से विदा हो गए। भारतीय कविता उनके अपार योगदान के लिए उन्हें सदैव स्मरण करेगी।”
‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘एक चुप्पी जगह’ जैसे उपन्यासों के रचयिता विनोद कुमार शुक्ल को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रायपुर स्थित उनके निवास पर 21 नवंबर को आयोजित समारोह में उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया था।
एक जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य के ऐसे रचनाकार थे, जो बहुत धीमे बोलते थे, लेकिन साहित्य की दुनिया में उनकी आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती थी।
उन्होंने मध्यमवर्गीय, साधारण और अक्सर अनदेखे रह जाने वाले जीवन को शब्द देते हुए हिंदी में एक अनोखी, संवेदनशील और जादुई दुनिया रची।
उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जय हिन्द’ वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ, जिससे उनकी विशिष्ट भाषिक संरचना, चुप्पी और भीतर तक उतरती कोमल संवेदनाएं हिंदी कविता में दर्ज होने लगीं। उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ (1979) ने हिंदी कथा साहित्य को नया मोड़ दिया, जिस पर मणि कौल ने फिल्म भी बनाई।
शुक्ल को साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रज़ा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान और 2023 में पैन-नाबोकोव पुरस्कार सहित अनेक सम्मानों से नवाजा गया था।
एक नवंबर को छत्तीसगढ़ यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी शुक्ल के परिजनों से बातचीत कर उनका कुशलक्षेम जाना था।
भाषा संजीव
मनीषा खारी
खारी