शह मात The Big Debate: नए जिला अध्यक्ष.. झगड़ा तगड़ा, किस-किस का गणित बिगड़ा? क्या सच में कार्यकर्ताओं के मत की अनदेखी की गई?
नए जिला अध्यक्ष.. झगड़ा तगड़ा, किस-किस का गणित बिगड़ा? Politics heats up in Chhattisgarh over the list of 41 district presidents
रायपुरः 3 महीने चले संगठन सृजन के बाद भी लिस्ट में प्रदेश के बड़े नेताओं की पसंद इनके वालों, उनके वालों के कितने नाम इस पर बहस गरमाई हुई है। 41 जिला अध्यक्षों की लिस्ट में कांग्रेस ने जाति, वर्ग समीकरणों का पूरा-पूरा ख्याल रखा, लेकिन जानकार मानते हैं कि फिर भी कुछ वर्ग अछूते रह गए तो कुछ अब भी उपेक्षित होने का आरोप लगा सकते हैं। भाजपा कहती है कांग्रेस में फेयर सलेक्शन की उम्मीद करना ही बेमानी है। तंज कसा गया कि जारी लेटर तो केवल पोस्टर है। एक्शन अभी बाकी है। वहीं कांग्रेस का दावा है कि कांग्रेस ने बीजेपी 2028 में जीत के लिए अभी से टीम बना ली है।
PCC चीफ का दावा है कि उनके नवनियुक्त संगठन जिलाध्यक्ष सत्तासीन बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज बनने वाले हैं। दरअसल, सितंबर से शुरू हुआ कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान, तकरीबन 3 महीनों में पूरा हो चुका है। बीती रात 41 संगठन जिला अध्यक्षों की नियुक्ति सूची जारी कर दी गई। लिस्ट आते ही चर्चा गर्माने लगी की किस नेता की कितनी चली, आरोप लगा कि संगठन सृजन अभियान में योग्यता, अनुभव और सक्रियता से ज्यादा बड़े कांग्रेसी नेताओं की चली है। कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने कहा कि लंबे समय के बाद पिक्चर रिलीज हुई है, लेकिन मार-धाड़ वाला असली एक्शन अभी बाकी है। वहीं, भाजपा विधायक पुरंदर मिश्रा ने तंज कसा कि ये संगठन सृजन नहीं, संगठन विसर्जन है…यहां भी लेन-देन की बू आ रही है। आरोप पर जवाब दिया टीएस सिंहदेव ने, कहा कि हर जिलाध्यक्ष किसी ने किसी से जुड़ा होता है और अगर नवनियुक्त जिलाध्यक्ष सही परफॉर्मेंस ना देंगे बदले भी जा सकते हैं।
हालांकि, लिस्ट जारी होने के बाद अभी तक कोई विरोध वाली हलचल तो नहीं दिखी लेकिन महासमुंद से द्वारिकाधीश यादव को अध्यक्ष बनाने पर कई सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने संगठन सृजन के तहत कोई फॉर्म नहीं भरा था, ना ही इंटरव्यू दिया था। इसके अलावा वो पहले से ही विधायक हैं। इस पर सफाई का दौर भी चल पड़ा है। कांग्रेस ने जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में- सोशल इंजीनियरिंग का खास ख्याल रखा है कि यादव और कायस्थ समाज से 5-5 अध्यक्ष दिए गए हैं तो तीन जिलों में साहू समाज से अध्यक्ष बनाए गए हैं, 4 अध्यक्ष अनुसूचित जाति और 4 अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति समाज से बनाए गए हैं, 3 कलार समाज से हैं तो 3 अध्यक्ष ब्राह्मण समाज से बनाए गए हैं, एक-एक अध्यक्ष पद जैन, मुस्लिम, मलयाली, और तमिल समाज से बनाए गए हैं..लेकिन फिर भी निषाद, ओडिया, सिंधी, सिख, निर्मलकर और सेन समाज से अध्यक्षों का प्रतिनिधित्व नदारद दिखता है। सवाल है क्या ये सारी नियुक्तियां नेताओं की पसंद मात्र से हुई हैं, प्रक्रिया का पालन महज दिखावा था? उससे भी बड़ा सवाल ये कि क्या अब पार्टी भाजपा से मुकाबले के लिए तैयार होगी या आपसी लड़ाई का टेस्ट अभी बाकी है?

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