वर्तमान विश्व के लिए आवश्यक है- भगवान महावीर की दिखाई राह

वर्तमान विश्व के लिए आवश्यक है- भगवान महावीर की दिखाई राह

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  • Publish Date - April 16, 2019 / 04:03 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:55 PM IST

रायपुर। महावीर जयंती चैत्र शुक्ल १३ को मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है। जैसा कि हम सभी जानते हैं,जैन धर्म और उनके माननने वालों ने हमेशा अहिंसा का पाठ पढ़ाया है। यदि घर में समाज में देश में दुनिया में क्लेश ना हो सब शांति से रहे तो किस तरह हम तरक्की कर सकते हैं। 
पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग के दौर में भगवान महावीर की दिखाई राह से संकट टल सकता है। भगवान महावीर को ‘पर्यावरण पुरुष’ भी कहा जाता है। कई शोधों ने साबित किया है कि अहिंसा विज्ञान ही असल पर्यावरण विज्ञान है। ज्ञात तथ्यों के आधार पर भगवान महावीर मानते थे कि जीव और निर्जीव की सृष्टि में जो निर्जीव तत्व है अर्थात मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति उन सभी में भी जीव है अत: इनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो। इनके अस्तित्व को अस्वीकार करने का मतलब है अपने अस्तित्व को नकारना।

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जैन धर्म का नारा है ‘जियो और जीने दो’। जैन धर्म के अनुसार जीव हत्या पाप है। हम मानव की क्रूरता के चलते आज हजारों प्राणियों की जाति-प्रजातियां लुप्तप्राय हो गई हैं। इंसानों के लिए बनाई जाने वाली दवाओं के लिए भी जंगली जानवरों पर संकट गहराता जा रहा है। यदि मानव धर्म के नाम पर या अन्य किसी कारण के चलते जीवों की हत्या करता रहेगा तो एक दिन मानव ही बचेगा और वह भी आखिरकार कब तक बचा रह सकता है। ये एक ऐसा सच है जिसे नकारा नहीं जा सकता।

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इस दुनिया में हर तरह के लोग रहते हैं और सभी को अपनी- अपनी संस्कृति और धर्म के मुताबित जीवन जीने का अधिकार है, हालांकि जैन धर्म को यदि विस्तार से देखा जाए तो उसमें तर्क- वितर्क भी नजर आता है। अब देखिए मांसाहारी लोग यह तर्क देते हैं कि यदि मांस नहीं खाएंगे तो धरती पर दूसरे प्राणियों की संख्या बढ़ती जाएगी और वे मानव के लिए खतरा बन जाएंगे। लेकिन क्या हमने कभी यह सोचा है कि मानव के कारण कितनी प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। खत्म होते जंगल में जानवरों को पानी तक नसीब नहीं हो रहा है। जलस्तर रसातल में पहुंच गया है। अब जंगली जानवर प्यासे मर रहे हैं। इसका जवाबदार कौन है,यदि गहराई से सोचेंगे तो आईने में शक्ल हमारी ही होगी।

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दिनों- दिन शहर पसरते जा रहे हैं, गांव में खेती की जमीन खिसकते हुए जंगल को निगलते जाती है,और पहाड़ गगनचुंबी इमरातों के आगे बौने हो गए हैं। जंगल से हमारा मौसम नियंत्रित और संचालित होता है। जंगल की ठंडी आबोहवा नहीं होगी तो सोचिए ये धरती औऱ कितनी आग उगलेगी। जंगल में घूमने और मौज करने के वो दिन अब सपने हो चले हैं। वृक्षों को लेकर पर्यावरण और जीव विज्ञानियों ने कई तरह के शोध करके यह सिद्ध किया है कि वृक्षों में भी महसूस करने और समझने की क्षमता होती है। जैन धर्म तो मानता है कि वृक्ष में भी आत्मा होती है, क्योंकि यह संपूर्ण जगत आत्मा का ही खेल है। वृक्ष को काटना अर्थात उसकी हत्या करना है।