छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पौराणिक इतिहास समेटा महामाया मंदिर | mahamaya mandir raipur

छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पौराणिक इतिहास समेटा महामाया मंदिर

छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पौराणिक इतिहास समेटा महामाया मंदिर

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 04:37 PM IST, Published Date : February 27, 2019/12:28 pm IST

धरोहर डेस्क। छत्तीसगढ़ में अनेक धार्मिक स्थल हैं उन्ही में से एक प्रसिद्ध मंदिर है महामाया। आज पर्यटन में हमारी खास पेशकश है। ‘महामाया का वरदान’ रायपुर शहर का सबसे पुराना इलाका है पुरानी बस्ती और पुरानी बस्ती में स्थित है मां माहामाया का मंदिर.ये मंदिर अपने पौराणिक इतिहास, दैवीय शक्तियों, अनोखी बनावट और प्राचीन मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है।

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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शहर के बीचों बीच पुरानी बस्ती में बना मां महामाया मंदिर पहली नजर में तो ये किसी आम मंदिर जैसा ही है। लेकिन मंदिर से जुड़ा इतिहास इसे खास बनाता है. मंदिर के निर्माण के समय से ही प्रचलित कहानियां और किस्सों का असर आज भी यहां महसूस कर सकते है। मंदिर का निर्माण छत्तीसगढ़ के हैहयवंशी राजाओं के साम्राज्य में हुआ था। मां महामाया देवी हैहयवंशी राजवंश की कुल देवी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में इन्होंने 36 किले का निर्माण कराया जहां-जहां राजा किले का निर्माण कराते गए। वहां पर शक्तिपीठ मां महामाया देवी के मंदिर का भी निर्माण करवाया. कहा जाता है कि एक बार राजा मोरध्वज अपनी रानी कुमुद्धती देवी के साथ राज्य भ्रमण पर निकले शाम होने पर राजा अपनी सेना के साथ खारून नदी के तट पर रूक गए.जब रानी अपनी दासियों के साथ स्नान करने नदी पहुंची तो उन्होने देखा कि एक पत्थर का टिला पानी में तैर रही है तीन विशालकाय सांप फन काढ़े उस टिले की रक्षा कर रहे थे..ये देखकर रानी और दासियां डर गई और चिल्लाते हुए पड़ाव में लौट आईं..जब राजा मोरध्वज को ये बात पता चली तो उन्होने अपने राज ज्योतिषों से विचार करवाया.ज्योतिषों ने उन्हे बताया कि ये कि ये कोई टिला नहीं बल्कि देवी की मूर्ति है।

 

 

राजा ने पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ कर मूर्ति को बाहर निकाला.जब मूर्ति नदी से बाहर निकली तो लोग ये देखकर आश्चर्य हो गए कि ये कोई साधारण मूर्ति नहीं बल्कि सिंह पर खड़ी हुई मां महिषासुरमर्दिनी की अष्टभुजी भगवती की मूर्ति है।इसके बारे में यह भी कहा जाता है कि स्वयं मां माहामाया ने ही राजा से कहा कि मुझे कंधे पर उठाकर मंदिर तक ले जाया जाए और मंदिर में मेरी स्थापना कराई जाए.राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों व ज्योतिषियों से विचार विमर्श किया। सभी ने सलाह दी कि भगवती माँ महामाया की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए। तभी जानकारी मिली कि पुरानी बस्ती क्षेत्र में एक नये मंदिर का निर्माण किया गया है.. लेकिन ये किसी दूसरे देवता के लिए बना है. राजा ने उसी मंदिर को तैयार करवाकर देवी की भी स्थापना करवाई.शक्तिपीठ महामाया मंदिर की दैवीय शक्ति का अहसास आपको मंदिर में जाते ही हो जाता है..मंदिर के समृद्ध पौराणिक इतिहास और मान्यताओं के साथ ही इसकी बनावट की भव्यता और कारीगरी भी बेजोड़ है. तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी राजधानी के इस मंदिर का प्रदेश के शक्तिपीठों में विशेष स्थान है। मंदिर प्रांगण में एक यज्ञ कुंड है. मंदिर के दूसरे हिस्से की तरह ही इस कुंड का भी अपना इतिहास है..ऐसी मान्यता है कि कई साल पहले इस कुंड की जगह पर ही मंदिर के पुजारी के ऊपर बिजली गिर गई थी..लेकिन पुजारी को कुछ नहीं हुआ. लोग इसे मां महामाया की कृपा मानते है।

देश के दूसरे जागृत देवी स्थलों की तरह महामाया मंदिर के साथ भी चमत्कारों की कई बातें जुड़ी हुई हैं । यहां विशेष मौकों पर कई बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जिन्हें सामान्य अर्थों में अलौकिक कहा जा सकता है । महामाया के भक्तों को इस बात का पूरा विश्वास है कि जो एक बार महामाया के दरबार में आता है..देर-सबेर उसकी फरियाद मां जरूर सुनती है। मंदिर में कई ऐसे भी श्रद्धालु हैं जो कई सालों से मंदिर में दर्शन के साथ ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं.महामाया मंदिर में आस्था रखने वाले मानते हैं कि मंदिर परिसर में पैर रखने के साथ ही लोग यहां के आध्यात्मिक माहौल से ओत-प्रोत हो जाते हैं. यहां की फिजाओं में ऐसा आध्यात्म घुला है जिससे दुख-तकलीफ और तनाव यहां आते ही छूमंतर हो जाता है

 
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