(गुंजन शर्मा)
नयी दिल्ली, 19 अक्टूबर (भाषा) पिछले तीन दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक समानता के मामले में दुनिया ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन इसके बावजूद दुनिया भर में लगभग 13.3 करोड़ लड़कियां अब भी स्कूल से बाहर हैं। यह जानकारी यूनेस्को के ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग (जीईएम) टीम द्वारा साझा की गई है।
बीजिंग डिक्लरेशन एंड प्लेटफार्म फॉर एक्शन ने 1995 में एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया था – शिक्षा सहित जीवन के सभी पहलुओं में महिलाओं की पूर्ण और समान भागीदारी। तीस साल बाद, बहुत कुछ हासिल किया गया है, लेकिन यूनेस्को के नये आंकड़े बताते हैं कि अब भी बहुत कुछ अधूरा है।
जीईएम टीम के एक सदस्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘ 1995 के बाद से, दुनिया शिक्षा में लैंगिक समानता के करीब पहुंच गई है। अब लड़कियां प्राथमिक, उच्चतर और माध्यमिक विद्यालयों में लड़कों के समान दर पर नामांकित होती हैं। वैश्विक स्तर पर, तीन दशकों पहले के मुकाबले 9.1 करोड़ अधिक लड़कियां प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रही हैं और 13.6 करोड़ अधिक लड़कियां माध्यमिक शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।’’
सदस्य ने कहा, ‘‘महिलाओं का उच्च शिक्षा में पंजीकरण तीन गुना बढ़कर 4.1 करोड़ से 13.9 करोड़ हो गया है। ये आंकड़े बहुत अहम हैं, क्योंकि ये वर्षों की मेहनत का नतीजा हैं, जो शिक्षा में लड़कियों की बाधाओं को दूर करने और उनके लिए अवसर बढ़ाने के लिए की गई। हालांकि ये पूरी तस्वीर नहीं है। आज भी 13.3 करोड़ लड़कियां स्कूल से बाहर हैं।’’
जीईएम टीम के अनुसार, क्षेत्र के अनुसार प्रगति में काफी अंतर है – मध्य और दक्षिणी एशिया ने माध्यमिक पंजीकरण में समानता हासिल कर ली है, जबकि उप-सहारा अफ्रीका अभी पीछे है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजिंग घोषणापत्र में पंजीकरण से कहीं अधिक की बात कही गई है, और इसमें परिवर्तन की भी मांग की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘फिर भी प्रगति धीमी रही है। लगभग दो-तिहाई देशों में प्राथमिक स्तर पर और लगभग तीन-चौथाई देशों में माध्यमिक स्तर पर यौन शिक्षा अनिवार्य है, जिससे कई युवा जरूरी ज्ञान और कौशल से वंचित रह जाते हैं। कई संदर्भों में पाठ्यपुस्तकें रूढ़िवादिता को चुनौती देने के बजाय उसे और मजबूत करती हैं।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘हालांकि शिक्षकों में महिलाओं की संख्या अधिक है, फिर भी नेतृत्व में उनका प्रतिनिधित्व कम है। दुनिया भर में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में केवल 30 प्रतिशत महिलाएं अग्रणी हैं। ये व्यवस्थागत कमियां समानता की एक सच्ची शक्ति के रूप में शिक्षा के वादे को कमजोर करती हैं।’’
यूनेस्को टीम ने कहा कि बीजिंग घोषणापत्र एक मील का पत्थर है, लेकिन सच्ची प्रगति के लिए मील के पत्थरों से आगे बढ़कर स्थायी बदलाव की ओर बढ़ना जरूरी है।
इसमें कहा गया है, ‘‘सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि पाठ्यक्रम, शिक्षण और परामर्श लैंगिक रूप से परिवर्तनकारी हों, और महिलाओं के लिए शिक्षा नेतृत्व के रास्ते मजबूत करें। उन्हें यौन शिक्षा का विस्तार करने, स्कूली हिंसा से शिक्षार्थियों की रक्षा करने की आवश्यकता है।’’
भाषा अमित प्रशांत
प्रशांत