तिरुप्परनकुंड्रम दीप प्रज्वलन मामले में अधिवक्ता ने कहा: सार्वजनिक अव्यवस्था से जुड़ी आशंका निराधार
तिरुप्परनकुंड्रम दीप प्रज्वलन मामले में अधिवक्ता ने कहा: सार्वजनिक अव्यवस्था से जुड़ी आशंका निराधार
मदुरै (तमिलनाडु), 17 दिसंबर (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एस श्रीराम ने बुधवार को कहा कि तिरुप्परनकुंड्रम पहाड़ी पर स्थित दरगाह के पास एक पत्थर के स्तंभ पर कार्तिगई दीपम (दीपक) को जलाने को लेकर जिले के अधिकारियों द्वारा जताई जा रही सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न होने की आशंका ‘निराधार’ है और इसका उद्देश्य तमिल संस्कृति को बाधित करना है।
श्रीराम ने कहा कि जब राज्य अपने अधिकारों को लागू करने के लिए ‘अनिच्छुक’ है, तो जनता उन्हें लागू करवाने की मांग कर सकती है।
उन्होंने कार्तिगई दीपम उत्सव पर ‘दीपाथून’ (पत्थर का स्तंभ) पर दीपक जलाने की अनुमति देने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश के विरुद्ध अपील का विरोध कर रहे श्रद्धालुओं की ओर से अपनी दलील पेश की।
न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन और न्यायमूर्ति के के रामकृष्णन की खंडपीठ ने, न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन के एक दिसंबर के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों के एक समूह पर आज चौथे दिन सुनवाई करते हुए, यह जानना चाहा कि क्या श्रद्धालु बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन अधिवक्ता ने इनकार कर दिया।
इस मामले में अपीलकर्ता राज्य, दरगाह, वक्फ बोर्ड, मदुरै जिला और मंदिर के अधिकारियों ने 16 दिसंबर को अपनी दलीलें पूरी कीं, जो लगातार तीन दिनों तक चली थी।
श्रीराम ने दलील दी कि श्रद्धालुओं के पूजा-पाठ के अधिकार का स्वरूप वक्फ बोर्ड और एएसआई अधिनियम के बीच विवाद और अंत:क्रिया का विषय बन गया है।
श्रीराम ने कहा, ‘‘सार्वजनिक व्यवस्था की दलील जिला प्रशासन की ओर से दी जा रही है, जिसने एकल न्यायाधीश (न्यायमूर्ति स्वामीनाथन) के समक्ष अपनी शिकायतें नहीं रखी हैं। सार्वजनिक व्यवस्था की दलील देना कोई बहाना या बचाव नहीं है, न ही जांच से बचने का कोई जरिया है।’’
जब उन्होंने कहा कि अधिकारी कह रहे हैं कि धार्मिक अधिकार को सार्वजनिक व्यवस्था के अधीन रखा जाना चाहिए, तो न्यायमूर्ति जयचंद्रन ने कहा, ‘‘दीपक न जलाने के लिए कहकर वे कैसे हस्तक्षेप कर रहे हैं? सार्वजनिक व्यवस्था का तर्क भी अतिरंजित है, और आपका तर्क भी।’’
श्रीराम ने जोर देकर कहा कि दीपक जलाना एक हिंदू धार्मिक प्रथा है, लेकिन अधिकारियों ने यह कहकर इसका खंडन करने की कोशिश की कि किसी विशेष स्थान पर पूजा करने का अधिकार अनुच्छेद 25 के तहत अधिकार नहीं है।
श्रीराम ने कहा, ‘‘मेरे मामले में, अधिकारियों की सोच संकीर्ण है और उनका झुकाव दूसरी तरफ है। मैं उस समुदाय का नाम नहीं लेना चाहता। दीपक जलाना और पूजा करना तमिल संस्कृति का हिस्सा है। इसे केवल सार्वजनिक अव्यवस्था की निराधार चिंताओं के आधार पर बाधित करने की कोशिश की जा रही है।’’
भाषा संतोष सुरेश
सुरेश

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