Supreme Court on President: राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति पर भी सख्ती, सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार तय की समय सीमा, कहा- 90 दिन में ले फैसला
राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति पर भी सख्ती, सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार तय की समय सीमा, After the Governor, the President is also strict
Bihar Voter List Revision/ Image Credit: IBC24 File
- उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल द्वारा रोके गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
- न्यायालय ने 'पॉकेट वीटो' की अवधारणा को खारिज करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के पास केवल स्वीकृति देने या रोकने का अधिकार है।
नई दिल्ली: Supreme Court on President: उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यह निर्धारित किया है कि राज्यपाल द्वारा रोके गए और राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर उन्हें तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए। दरअसल चार दिन पहले शीर्ष अदालत ने उन 10 विधेयकों को मंजूरी दी जिन्हें तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा था। साथ ही न्यायालय ने सभी राज्यपालों को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए समयसीमा निर्धारित की थी। 415 पृष्ठों का यह फैसला शुक्रवार रात 10.54 बजे शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
Supreme Court on President: न्यायालय ने कहा, ‘‘हम गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा को अपनाना उचित समझते हैं… और निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन माह की अवधि के भीतर निर्णय लेना आवश्यक है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इस अवधि से परे किसी भी देरी के मामले में, उचित कारण दर्ज कराने होंगे और संबंधित राज्य को सूचित करना होगा। राज्यों को भी सहयोगात्मक होना चाहिए और अगर कोई प्रश्न उठाए जाएं तो उनके उत्तर देकर सहयोग करना चाहिए और केंद्र सरकार द्वारा दिए गए सुझावों पर शीघ्रता से विचार करना चाहिए।’’ न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने राष्ट्रपति के विचारार्थ 10 विधेयकों को सुक्षित करने के फैसले को आठ अप्रैल को अवैध और कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया था। संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को उसके समक्ष प्रस्तुत विधेयक पर स्वीकृति देने, स्वीकृति रोकने या राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखने का अधिकार देता है।
उच्चतम न्यायालय ने समयसीमा निर्धारित की और कहा कि इसका अनुपालन न करने पर राज्यपालों की निष्क्रियता न्यायालयों के न्यायिक समीक्षा के अधीन हो जाएगी। न्यायालय ने कहा, ‘‘विधेयक को मंजूरी न दिए जाने या राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे जाने की स्थिति में राज्यपाल से तत्काल कदम उठाने की अपेक्षा की जाती है, जो अधिकतम एक महीने की अवधि के अधीन है।’’ आदेश में कहा गया,‘‘ राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह के विपरीत, मंजूरी न दिए जाने की स्थिति में राज्यपाल को अधिकतम तीन महीने की अवधि के भीतर एक संदेश के साथ विधेयक को वापस करना होगा।’’ पीठ ने कहा कि राज्यपाल सहमति को रोक नहीं सकते और ‘पूर्ण वीटो’ या ‘आंशिक वीटो’ (पॉकेट वीटो) की अवधारणा नहीं अपना सकते। पीठ ने कहा, ‘‘अनुच्छेद 201 के तहत अपने कार्यों के निर्वहन में राष्ट्रपति को कोई ‘पॉकेट वीटो’ या ‘पूर्ण वीटो’ उपलब्ध नहीं है। ‘घोषणा करेगा’ अभिव्यक्ति का उपयोग राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 201 के मूल भाग के तहत उपलब्ध दो विकल्पों के बीच चयन करना अनिवार्य बनाता है, अर्थात या तो विधेयक को स्वीकृति प्रदान करना या स्वीकृति रोकना।’’

Facebook



