साल में दो बार एचआईवी रोधी इंजेक्शन शत प्रतिशत कारगर : अध्ययन
साल में दो बार एचआईवी रोधी इंजेक्शन शत प्रतिशत कारगर : अध्ययन
नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि इंजेक्शन के जरिए साल में दो बार दी जाने वाली एचआईवी-निवारक एक दवा ने महिलाओं में 100 प्रतिशत प्रभावशीलता दिखाई है तथा इसमें “सुरक्षा संबंधी कोई चिंता” भी नजर नहीं आई है।
साल में दो बार इंजेक्शन के रूप में दी जाने वाली ‘लेनकापाविर’ को अमेरिका स्थित बायोफार्मास्युटिकल कंपनी जीलेड साइंसेज द्वारा ‘प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस’ (रोग निरोधक) दवा के रूप में विकसित किया गया है। ये दवाएं उन लोगों में संक्रमण फैलने से रोकती हैं जो अभी तक रोग पैदा करने वाले वाहक के संपर्क में नहीं आए हैं।
कंपनी ने एक बयान में कहा कि यह अध्ययन, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा में किशोरवय लड़कियों और युवा महिलाओं को शामिल करते हुए चरण-3 का परीक्षण है।
बयान के अनुसार, इसमें पता चला कि कि ‘प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस’ (प्रीईपी) लेनकापाविर ने “शून्य (एचआईवी) संक्रमण” और “100 प्रतिशत प्रभावशीलता प्रदर्शित की”।
एचआईवी या ‘ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस’ संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक द्रव (बॉडी फ्लूइड) से फैलता है। उपचार न किए जाने पर, संक्रमण वर्षों में एड्स या ‘एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम’ में बदल सकता है।
उद्देश्य 1 परीक्षण में, 5,338 प्रतिभागियों को, जो शुरू में एचआईवी-नेगेटिव थे, तीन समूहों में विभाजित किया गया। इनमें 2,134 को 26 सप्ताह के अंतर पर लेनकापाविर इंजेक्शन दिए गए; 2,136 को दैनिक रूप से गोली डेस्कोवी (एफ/टीएएफ) दी गई; तथा 1,068 को दैनिक रूप से गोली ट्रुवाडा (एफ/टीडीएफ) दी गई।
दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन विश्वविद्यालय के डेसमंड टूटू एचआईवी सेंटर समेत अनुसंधानकर्ताओं ने कुल 55 संक्रमण देखे – लेनकापाविर समूह में शून्य, डेसोवी समूह में 39 और ट्रुवाडा समूह में 16 संक्रमण दिखे।
अध्ययन के लेखकों ने लिखा, “साल में दो बार लेनकापाविर लेने वाले किसी भी प्रतिभागी को एचआईवी संक्रमण नहीं हुआ।”
लेनकापाविर समूह के लगभग 70 प्रतिशत प्रतिभागियों में सबसे आम प्रतिकूल प्रभाव इंजेक्शन-स्थल पर होने वाली प्रतिक्रियाएं थीं। हालांकि, बयान के अनुसार, “इंजेक्शन-स्थल पर कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं हुई।”
केपटाउन विश्वविद्यालय के डेसमंड टूटू एचआईवी सेंटर की निदेशक और अध्ययन की प्रथम लेखक लिंडा-गेल बेकर ने एक बयान में कहा, “ये शानदार परिणाम दर्शाते हैं कि प्रीईपी के लिए दो बार वार्षिक लेनकापाविर, यदि स्वीकृत हो जाता है, तो एक अत्यधिक प्रभावी, वहनीय और विवेकपूर्ण विकल्प प्रदान कर सकता है जो संभावित रूप से प्रीईपी के उपयोग और दृढ़ता में सुधार कर सकता है, जिससे हमें वैश्विक स्तर पर सिसजेंडर महिलाओं में एचआईवी को कम करने में मदद मिल सकती है।”
सिसजेंडर वह शब्द है जो किसी व्यक्ति की लैंगिक पहचान को दर्शाता है, न कि उसकी यौन अभिरुचि को।
भाषा प्रशांत नेत्रपाल
नेत्रपाल

Facebook



