नयी दिल्ली, 14 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया ‘सार्वजनिक सेवा’ की ‘सामान्य भर्ती’ जैसी नहीं है और न्यायिक प्रणाली उनकी कमी से वाकिफ है।
न्यायिक रिक्तियों को शीघ्रता से भरने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह मामले को उसके प्रशासनिक पक्ष पर छोड़ दें, क्योंकि इस मुद्दे को सुलझाने के प्रयास जारी हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘ये उच्च संवैधानिक पद हैं। यह ‘सार्वजनिक सेवा’ की सामान्य भर्ती नहीं हैं। आप यह नहीं कह सकते कि प्रतिवादी संख्या एक (केंद्र) और दो (उच्च न्यायालय) स्थिति से वाकिफ नहीं हैं।’’
पीठ ने आगे कहा, ‘‘मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि आप मामले को प्रतिवादी एक और दो के प्रशासनिक पक्ष पर छोड़ दें। न्यायिक प्रणाली से जुड़ा हर व्यक्ति स्थिति से वाकिफ है। ऐसा नहीं है कि प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।’’
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय पहले से ही न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित व्यापक मुद्दों से निपट रहा है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमित साहनी ने याचिका वापस लेने और शीर्ष अदालत में जाने की मांग की। अदालत ने कहा, ‘‘इस याचिका में कुछ भी निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं है। याचिका का निपटारा किया जाता है।’’
जनहित याचिका के मुताबिक, दिल्ली उच्च न्यायालय में स्वीकृत संख्या के अनुरूप कुल 60 न्यायाधीश (45 स्थायी और 15 अतिरिक्त न्यायाधीशों के साथ) होने चाहिए , लेकिन फिलहाल केवल 36 न्यायाधीश कार्यरत हैं।
भाषा
संतोष पवनेश
पवनेश
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