असम भैंसों की पारंपरिक लड़ाई के आयोजन के लिए नया कानून लाएगा : हिमंत

असम भैंसों की पारंपरिक लड़ाई के आयोजन के लिए नया कानून लाएगा : हिमंत

असम भैंसों की पारंपरिक लड़ाई के आयोजन के लिए नया कानून लाएगा : हिमंत
Modified Date: February 1, 2025 / 03:11 pm IST
Published Date: February 1, 2025 3:11 pm IST

जागीरोड (असम), एक फरवरी (भाषा) असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने शनिवार को कहा कि उनकी सरकार राज्य में भैंसों की पारंपरिक लड़ाई के आयोजन की अनुमति देने के लिए एक नया कानून लाएगी।

शर्मा ने यहां एक पुल का उद्घाटन करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार राज्य की विरासत को संरक्षित करने के लिए पहल करेगी।

उन्होंने कहा, ‘‘अहतगुरी में भैंसों की लड़ाई हमारी परंपरा और विरासत है। यहां तक ​​कि उच्चतम न्यायालय ने भी इसे पारंपरिक खेल के रूप में मान्यता दी है। इसके दिशानिर्देशों का पालन करते हुए हम जल्द ही भैंसों की लड़ाई जैसे पारंपरिक खेलों को अनुमति देने वाला कानून लाएंगे।’’

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उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बहुत जल्द विधानसभा में एक विधेयक पेश करेगी, जिसमें भैंसों की लड़ाई के खेल को कानूनी संरक्षण देने का प्रस्ताव किया जाएगा।

शर्मा ने कहा, ‘‘कानून के लागू होने से लोग भैंसों की पारंपरिक लड़ाई देख सकेंगे और उसका आनंद ले सकेंगे।’’

पिछले साल दिसंबर में, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने असम सरकार के 2023 की मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को रद्द कर दिया था, जिसके तहत हर साल जनवरी के महीने में माघ बिहू उत्सव के दौरान भैंस और बुलबुल पक्षियों की लड़ाई के खेलों की अनुमति दी गई थी।

पिछले साल 15 जनवरी को असम सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के बाद, लगभग नौ साल के अंतराल के बाद बुलबुल पक्षियों की पारंपरिक लड़ाई का आयोजन किया गया था।

दिसंबर 2023 में राज्य मंत्रिमंडल द्वारा एसओपी को मंजूरी दिए जाने के बाद दोनों कार्यक्रम फिर से शुरू हो गए। एसओपी में जानवरों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसमें जानवरों को नियंत्रित करने के लिए मादक पदार्थ या धारदार हथियारों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध शामिल है।

बुलबुल पक्षियों की लड़ाई जनवरी के मध्य में माघ बिहू के दिन कामरूप जिले के हाजो में हयाग्रीव माधव मंदिर में आयोजित की जाती है, जिसमें सैकड़ों आगंतुक आते हैं।

इसी तरह, भैंसों की लड़ाई का आयोजन भी उसी समय मोरीगांव, शिवसागर और ऊपरी असम के कुछ जिलों में किया जाता है, लेकिन मोरीगांव में अहतगुरी सबसे प्रसिद्ध है।

भाषा सुभाष पवनेश

पवनेश


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