नयी दिल्ली, 13 अक्टूबर (भाषा) विभिन्न बौद्ध संगठनों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने दिल्ली के पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम पर देश को बांटने के प्रयास का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
गौतम को धर्मांतरण कार्यक्रम का एक वीडियो सामने आने के बाद केजरीवाल सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था। इस वीडियो में बड़ी संख्या में लोग और गौतम हिंदू देवी-देवताओं को भगवान न मानने और उनकी पूजा न करने की शपथ लेते हुए सुनाई दे रहे थे।
एक ओर जहां भाजपा ने गौतम और आम आदमी पार्टी (आप) पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया, तो दूसरी ओर गौतम ने दलील दी कि विवादित शपथ बी. आर आंबेडकर के 22 वचनों का हिस्सा थी, जो उन्होंने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाने के दौरान लिए थे।
बौद्ध पदाधिकारियों ने अपने पत्र में कहा कि वे वीडियो से “बहुत परेशान” हैं, क्योंकि जो हुआ है, वह पूरी तरह से भगवान बुद्ध की शिक्षाओं और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ है।
उन्होंने लिखा, “बौद्ध धर्म अन्य धर्मों के खिलाफ जहर उगलने की शिक्षा नहीं देता। बौद्ध धर्म अन्य देवी-देवताओं को ‘अस्वीकार’ करने या उनका अनादर करने का समर्थन नहीं करता। भगवान बुद्ध की शिक्षाएं सदियों से ‘स्वयं प्रबुद्ध’ की भावना और सभी धर्मों के प्रति सम्मान का प्रतीक हैं। बौद्ध और हिंदू शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ रहते हैं और इनके बीच एक समृद्ध अंतरधार्मिक संवाद रहा है। महात्मा गांधी भगवान बुद्ध के विचारों से बहुत प्रभावित थे और समय-समय पर इनपर बात भी करते थे।”
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में ‘धर्म संस्कृति संगम’ के राजेश लांबा, ‘महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया’ के. पी. सीवाले और ‘इंटरनेशनल बौद्ध रिसर्च’ के शांतिमित्र शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस कार्यक्रम में दिल्ली के एक कैबिनेट मंत्री मौजूद थे।
उन्होंने दावा किया कि यह सभा किसी भी तरह से देश के संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है, जिसे उन्होंने बरकरार रखने की शपथ ली थी।
पत्र में कहा गया है, “दिल्ली सरकार के मंत्री के वहां जाने की किसी ने निंदा नहीं की। हमें उम्मीद है कि जल्द से जल्द ऐसा किया जाएगा। हम संबंधित अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि देश को बांटने के प्रयास के लिए उनके साथ-साथ उपस्थित लोगों के खिलाफ भी तत्काल कार्रवाई की जाए।”
भाषा जोहेब दिलीप
दिलीप
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