नयी दिल्ली, 11 जनवरी (भाषा) ‘‘सामूहिक जिम्मेदारी, सहायता और सलाह’’ को लोकतंत्र का ‘‘आधार’’ करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उसे एक संतुलन बनाना होगा और फैसला करना होगा कि दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण केंद्र या दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए अथवा बीच का रास्ता तलाशना होगा।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र-दिल्ली सरकार के विवाद पर सुनवाई फिर से शुरू करते हुए कानूनी स्थिति के बारे में भी जानना चाहा और पूछा कि किसी अधिकारी को अगर केंद्रशासित प्रदेश कैडर आवंटित किया जाता है तो क्या आम आदमी पार्टी नीत सरकार के पास पदस्थापना का अधिकार होगा।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें दी कीं कि वह उस धारणा को दूर करने की कोशिश करेंगे, जिसे बनाने की कोशिश की गई है कि उपराज्यपाल ‘‘सब कुछ कर रहे हैं’’, ‘‘अधिकारियों की निष्ठा कहीं ओर है’’ और दिल्ली सरकार ‘‘सिर्फ प्रतीकात्मक’’ है।
पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे। मेहता ने पीठ से कहा, ‘‘1992 से अब तक, उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच मतभेद का हवाला देते हुए केवल सात मामलों को राष्ट्रपति के पास भेजा गया है और कानून के अनुसार कुल 18,000 फाइल उपराज्यपाल के पास आईं और सभी फाइल को मंजूरी दे दी गई।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार (केंद्र द्वारा) को आवंटित अधिकारियों की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) लिखते हैं।’’ साथ ही मेहता ने कहा कि इन अधिकारियों को मुख्यमंत्री की तरफ से 10 के पैमाने पर 9 से 9.5 की प्रभावशाली रेटिंग मिल रही है।
मेहता ने कहा, ‘‘मैं सहमत हूं कि सामूहिक सिद्धांत का सम्मान किया जाना चाहिए। मुझे इसका उल्लेख करना होगा कि हम धारणा के मामले से निपट रहे हैं न कि संवैधानिक कानून से।’’
सुनवाई के दौरान पीठ ने उन विषयों की राज्य सूची में लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसी तीन प्रविष्टियों का उल्लेख किया, जहां दिल्ली सरकार अनुच्छेद 239एए (दिल्ली के संबंध में विशेष प्रावधान) के अनुसार कानून नहीं बना सकती है।
पीठ ने कहा, ‘‘अनुच्छेद 239एए सामूहिक उत्तरदायित्व, सहायता और सलाह को सुरक्षित रखता है-ये लोकतंत्र के आधार हैं। तथा राष्ट्रहित में तीन विषयों (लोक व्यवस्था, पुलिस एवं भूमि) को निकाला गया है। इसलिए आपको दोनों में संतुलन बनाने की जरूरत है। हमें जिस प्रश्न का उत्तर देना है वह सार्वजनिक सेवाओं पर नियंत्रण है। क्या सार्वजनिक सेवाओं पर नियंत्रण विशेष रूप से एक या दूसरे के पास होना चाहिए, या बीच का रास्ता होना चाहिए।’’
पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी और सॉलिसिटर जनरल से एक विशेष कैडर, राज्य या केंद्रशासित प्रदेश आवंटित किए जाने के बाद नौकरशाहों की पदस्थापना की शक्ति के संबंध में कानूनी स्थिति के बारे में भी पूछा।
पीठ ने सवाल किया, ‘‘एक बार जब किसी व्यक्ति को कैडर आवंटित कर दिया जाता है, तो राज्य तय करता है कि उसे कहां तैनात किया जाएगा। अब क्या यह केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली पर लागू होगा?’’
सिंघवी ने कहा कि एक बार जब कोई व्यक्ति दिल्ली में तैनात हो जाता है, तो उनका स्थानांतरण, पदस्थापना और अन्य मुद्दे शहर की सरकार के अधीन आ जाएंगे।
सॉलिसिटर जनरल बृहस्पतिवार को अपनी दलीलें फिर से शुरू करेंगे। मंगलवार को सिंघवी ने कहा कि अगर सरकार सेवाओं पर नियंत्रण नहीं रखती है तो सरकार काम नहीं कर सकती है क्योंकि नौकरशाह को बाहर करने से शासन की उपेक्षा होगी और अधिकारी लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।
इससे पूर्व, शीर्ष अदालत ने पिछले साल 22 अगस्त को कहा था कि दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए एक संविधान पीठ का गठन किया गया है। शीर्ष अदालत ने छह मई को दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा था।
भाषा आशीष माधव
माधव
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