तेजाब पीड़िताओं के लिए वैकल्पिक डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस |

तेजाब पीड़िताओं के लिए वैकल्पिक डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस

तेजाब पीड़िताओं के लिए वैकल्पिक डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस

:   Modified Date:  May 17, 2024 / 03:46 PM IST, Published Date : May 17, 2024/3:46 pm IST

नयी दिल्ली, 17 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तेजाब हमले की पीड़िताओं और आंखों को स्थायी रूप से हुई क्षति वाले लोगों के लिए वैकल्पिक डिजिटल केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) प्रक्रिया की मांग करने वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य लोगों से शुक्रवार को जवाब मांगा।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने तेजाब हमले की नौ पीड़िताओं द्वारा दाखिल याचिका को एक ‘महत्वपूर्ण मुद्दा’ करार दिया और केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी किया।

पीठ ने कहा, ”हम नोटिस जारी करेंगे। यह एक अहम मुद्दा है और हम इसपर सुनवाई करेंगे।”

तेजाब हमलों के खिलाफ अभियान चला रहीं कार्यकर्ता प्रज्ञा प्रसून और अन्य ने नेत्र विकृति वाली तेजाब पीड़िताओं के लिए एक वैकल्पिक डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी, जिस पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही थी।

याचिका में जिक्र किया गया कि एक याचिकाकर्ता, जिसकी आंखों को तेजाब हमले के कारण गंभीर नुकसान पहुंचा था, 2023 में आईसीआईसीआई बैंक में अपना खाता खुलवाने के लिए गयी थी।

याचिकाकर्ता को ‘लाइव फोटोग्राफी’ के दौरान अपनी पलकों को झपकना था लेकिन वह इस डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करने में सक्षम नहीं थी, जिस कारण उसका खाता नहीं खुला।

याचिका में बताया गया कि तेजाब हमले की कई पीड़िताएं नेत्र विकृति का शिकार होती हैं और उन्हें सिम कार्ड खरीदने से लेकर बैंक खाता खुलवाने तक में इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

याचिका में बताया गया कि इस तरह की समस्याएं तेजाब हमले की पीड़िताओं को आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंचने से रोकती हैं।

याचिका के मुताबिक, केंद्र सरकार को ‘लाइव फोटोग्राफी’ की व्याख्या में विस्तार करना चाहिए या फिर स्पष्टीकरण देना चाहिए और पलकें झपकाने के अलावा आवाज की पहचान या फिर चेहरे की गतिविधियों जैसे वैकल्पिक मानदंडों को शामिल किया जाना चाहिए।

भाषा जितेंद्र मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)