बार कोटे के तहत जिला न्यायाधीश पदों के लिए पात्रता संबंधी सवाल पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा

बार कोटे के तहत जिला न्यायाधीश पदों के लिए पात्रता संबंधी सवाल पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा

बार कोटे के तहत जिला न्यायाधीश पदों के लिए पात्रता संबंधी सवाल पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा
Modified Date: September 25, 2025 / 05:29 pm IST
Published Date: September 25, 2025 5:29 pm IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या ऐसे न्यायिक अधिकारियों को, जिन्होंने न्यायालय में नियुक्ति से पहले अधिवक्ता के रूप में सात वर्षों की वकालत पूरी कर ली हो, बार के लिए आरक्षित रिक्तियों के तहत जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 30 याचिकाओं पर दलीलें सुनीं, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका देश भर में न्यायिक भर्ती पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

पीठ संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या से संबंधित प्रश्नों की जांच कर रही है जो जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को निर्धारित करता है।

 ⁠

अनुच्छेद 233 में कहा गया है कि किसी भी राज्य में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, तथा उनकी पदस्थापना और पदोन्नति, उस राज्य के संबंध में क्षेत्राधिकार रखने वाले उच्च न्यायालय के परामर्श से उस राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी।

इसमें यह भी कहा गया है कि, “कोई व्यक्ति जो पहले से ही संघ या राज्य की सेवा में नहीं है, जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए केवल तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वर्षों तक अधिवक्ता या वकील रहा हो और उच्च न्यायालय द्वारा उसकी नियुक्ति की सिफारिश की गई हो।”

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) की अध्यक्षता वाली पीठ ने 12 सितंबर को यह जांच करने का निर्णय लिया कि क्या बार में वकालत और उसके बाद न्यायिक सेवा के संयुक्त अनुभव को पात्रता में गिना जा सकता है।

सीजेआई ने हालांकि ऐसी व्याख्या के प्रति आगाह किया, जिससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है कि केवल दो वर्ष की वकालत का अनुभव रखने वाला व्यक्ति भी पात्र हो जाए।

उच्च न्यायिक सेवा के अंतर्गत आने वाले एडीजे के पद अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं। इन्हें वकीलों की सीधी भर्ती के माध्यम से भी भरा जाता है, जिन्हें बार में कम से कम सात वर्षों का अनुभव हो।

अब मुद्दा यह है कि क्या एक अधीनस्थ न्यायिक अधिकारी भी वकीलों के लिए सीधी भर्ती कोटे के तहत एडीजे के पदों के लिए आवेदन कर सकता है और न्यायिक अधिकारी या वकील या दोनों के रूप में उसके सात साल के अनुभव को गिना जा सकता है या नहीं।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 12 अगस्त को इन प्रश्नों को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया था।

पीठ ने कहा, “हम इस मुद्दे को इस न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष विचारार्थ भेजते हैं। रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह उचित आदेश प्राप्त करने के लिए मामले को प्रशासनिक पक्ष से भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे।”

शीर्ष अदालत ने यह आदेश केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए पारित किया था, जिसमें एक जिला न्यायाधीश की नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि नियुक्ति के समय वह अधिवक्ता नहीं थे और न्यायिक सेवा में थे।

याचिकाकर्ता वकालत कर रहे एक वकील थे, जिनके पास बार में सात साल का अनुभव था, जब उन्होंने जिला न्यायाधीश के पद के लिए अपना आवेदन प्रस्तुत किया था।

भाषा प्रशांत पवनेश

पवनेश


लेखक के बारे में