नयी दिल्ली, तीन दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को निर्देश दिया है कि वह उन सभी आरओ निर्माताओं को वाटर प्यूरीफायर पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश जारी करे, जहां पानी में पूर्णतः घुले हुए ठोस पदार्थ (टीडीएस) का स्तर 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है।
एनजीटी के प्रमुख न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ नागिन नंदा की पीठ ने सीपीसीबी से कार्ट्रिज सहित आरओ रिजेक्ट के प्रबंधन पर भी निर्देश जारी करने को कहा।
पीठ ने कहा, “उच्चतम न्यायालय के आदेश के साथ पठित इस अधिकरण के आदेशों के अनुपालन के लिए, हम सीपीसीबी को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत सभी निर्माताओं को इस अधिकरण के आदेशों के संदर्भ में एक उचित आदेश जारी करने का निर्देश देते हैं ताकि एक महीने के भीतर यह लागू हो सके।”
अधिकरण ने कहा कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्राललय द्वारा जल शोधन प्रणाली के उपयोग पर विनियमन’ पर जारी गजट अधिसूचना को उसके आदेश का अनुपालन नहीं कहा जा सकता है।
पीठ ने अपने एक दिसंबर के आदेश में कहा, “अधिसूचना पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986, अनुसूची एक के नियम 115 में संशोधन के संबंध में है ताकि घरेलू जल शोधन प्रणाली (डीडब्ल्यूपीएस) और अन्य डीडब्ल्यूपीएस के सभी उपयोगकर्ता सीपीसीबी द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करें।
उसने कहा,’जहां टीडीएस 500 मिलीग्राम/लीटर से कम है, वहां आरओ सिस्टम को विनियमित और प्रतिबंधित करने का कोई प्रावधान नहीं है, जैसा कि इस अधिकरण द्वारा निर्देशित किया गया है। आरओ रिजेक्ट की कोई आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन भी नहीं है। इसी तरह, पानी की बर्बादी का मुद्दा अनसुलझा रह जाता है।”
एनजीटी ने स्पष्ट किया कि सीपीसीबी का आदेश पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) द्वारा जारी अधिसूचना से स्वतंत्र और अप्रभावित होगा।
हरित अधिकरण ने पहले कहा था जनहित की कीमत पर केवल कंपनियों के व्यावसायिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए जनहित की कीमत पर आरओ प्यूरीफायर के उपयोग में पानी की भारी बर्बादी को रोकने की जरूरत है।
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नेहा उमा
उमा