शालीनता और अनुशासन ही लोकतंत्र की आत्मा: धनखड़

शालीनता और अनुशासन ही लोकतंत्र की आत्मा: धनखड़

शालीनता और अनुशासन ही लोकतंत्र की आत्मा: धनखड़
Modified Date: November 29, 2022 / 08:06 pm IST
Published Date: September 20, 2022 7:22 pm IST

जयपुर, 20 सितंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने व‍िधाय‍िका के कामकाज को जीवंत और स्वस्थ लोकतंत्र की कुंजी बताते हुए मंगलवार को कहा कि ये संस्थाए प्रामाणिक रूप से लोगों की इच्छा के साथ-साथ उनकी आकांक्षाओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।

धनखड़ ने संसद और विधानसभाओं में सदस्यों के अमर्यादित आचरण पर गहरी चिंता भी जतायी एवं इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कड़ी चुनौती बताया। उन्‍होंने कहा कि शालीनता और अनुशासन ही लोकतंत्र की आत्मा है।

वह राजस्थान विधानसभा में अभिनंदन समारोह को संबोधित कर रहे थे।

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उन्‍होंने कहा,‘‘ संसद और विधानमंडलों का कामकाज एक जीवंत और स्वस्थ लोकतंत्र की कुंजी है। ये संस्थाए प्रामाणिक रूप से लोगों की इच्छा के साथ-साथ उनकी आकांक्षाओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। लोकतंत्र के इन मंदिरों में जन प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करना आवश्यक है।’’

उन्‍होंने कहा , ‘‘संसद और विधानमंडल सरकारों को प्रबुद्ध करने का सशक्त माध्यम है। ये लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने का सार्थक और प्रभावी माध्यम है तथा कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराना, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व स्थापित करना इन संस्थाओं का मूल कर्तव्य है। ’’

अनुशासन और स्वस्थ विचार मंथन को लोकतंत्र की आत्मा बताते हुए उन्‍होंने कहा क‍ि विधानमंडलों और संसद में यह सब अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विधानमंडलों और संसद में बहस, चर्चा और विचार-विमर्श ही लोकतंत्र का अमृत है। उनका कहना था कि लोकतंत्र की जननी और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों का आचरण अनुकरणीय होना चाह‍िए– इसकी कल्‍पना व अपेक्षा संविधान निर्माताओं ने की थी।

उन्‍होंने कहा,‘‘ आज के हालात अत्यंत गम्भीर और चिंतनीय हैं- सामयिक दृश्य में संसद और विधानसभाएँ किसी कुश्ती के अखाडे़ से कम नहीं हैं। संसद और विधानमंडलों में वर्तमान परिदृश्य चिंताजनक है और ये लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कड़ी चुनौती एवं गहरी चिंता का कारण है।’

उन्‍होंने कहा, ‘‘ शालीनता और अनुशासन ही लोकतंत्र की आत्मा हैं। चुने हुए जन प्रतिनिधियों को अपने कार्यों और वचन द्वारा उच्च मानदंड स्थापित करने चाहिए।’’ उन्होंने राजनीतिक दलों से साथ आने तथा सहमति की भावना से अपने मतांतर सुलझाने का आग्रह किया।

‘ शक्ति के विभाजन’ के सिद्धांत का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘राज्य’ के तीनों अंगों में से कोई भी एक अंग स्वयं को सर्वोच्च नहीं मान सकता क्योंकि सिर्फ संविधान ही सर्वोच्च है।

इस अवसर पर विधानसभाध्यक्ष डा. सी पी जोशी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया, राजस्थान सरकार में संसदीय कार्य मंत्री शांति कुमार धारीवाल तथा राजस्थान विधान सभा के सदस्य उपस्थित रहे। बाद में उपराष्ट्रपति मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा उनके सम्मान में मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित एक रात्रिभोज में सम्मिलित हुए।

भाषा पृथ्‍वी कुंज

राजकुमार

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