नयी दिल्ली, 29 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी की एक स्थानीय अदालत ने बुधवार को उत्तर पूर्वी दिल्ली में 2020 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान आगजनी, घर में जबरन घुसने और उत्पात मचाने सहित कथित आरोपों से 10 लोगों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि शक के आधार पर आरोप साबित नहीं किए जा सकते।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला 25 फरवरी, 2020 को दंगों के दौरान भागीरथी विहार इलाके में एक दुकान में आग लगाने वाली दंगाई भीड़ का हिस्सा होने के 10 आरोपियों के खिलाफ एक मामले की सुनवाई कर रहे थे।
अदालत ने कहा कि तीन प्रमुख गवाह शिकायतकर्ता, उनके बेटे और उनके भतीजे आरोपियों की पहचान स्थापित करने में अभियोजन पक्ष की मदद नहीं कर पाए।
अदालत के मुताबिक, पुलिस द्वारा पेश किए गए तीनों गवाहों ने आरोपियों की पहचान में गड़बड़ी की।
अदालत ने कहा, ”इस तरह की गड़बड़ी भ्रम की वजह से या फिर सोच-समझकर बयान देने के कारण हो सकती है।”
अदालत ने कहा कि इसके अलावा एक सहायक उप-निरीक्षक ने कुछ आरोपियों की पहचान करने के संबंध में ‘बार-बार बदलने वाला रुख’ अपनाया था।
न्यायाधीश ने कहा, ”बार-बार रुख में बदलाव से इस मामले में कथित घटना के दौरान भीड़ में किसी भी आरोपी व्यक्ति को देखने के उनके दावे पर प्रतिकूल रूप से प्रभाव डालता है।”
उन्होंने कहा, ”इस प्रकार अलग-अलग समय पर एक ही आरोपी व्यक्ति की पहचान में बार-बार टाल-मटोल के आधार पर मुझे लगता है कि आरोपी व्यक्ति को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। ”
अदालत ने 10 लोगों को सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा, ”इस मामले में लगाए गए आरोप शक के आधार पर साबित नहीं किए जा सकते।”
भाषा जितेंद्र माधव
माधव
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