व्यावसायीकरण रोकने के लिए दिल्ली सरकार निजी स्कूलों की फीस संरचना को विनियमित कर सकती है: अदालत

व्यावसायीकरण रोकने के लिए दिल्ली सरकार निजी स्कूलों की फीस संरचना को विनियमित कर सकती है: अदालत

व्यावसायीकरण रोकने के लिए दिल्ली सरकार निजी स्कूलों की फीस संरचना को विनियमित कर सकती है: अदालत
Modified Date: October 10, 2025 / 08:38 pm IST
Published Date: October 10, 2025 8:38 pm IST

नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि शहर की सरकार मुनाफाखोरी, शिक्षा के व्यावसायीकरण और ‘कैपिटेशन फीस’ की वसूली पर लगाम लगाने के लिए ही गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों की फीस संरचना को विनियमित कर सकती है।

मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने नौ अक्टूबर को पारित आदेश में कहा कि सरकार ऐसे स्कूलों पर व्यापक प्रतिबंध नहीं लगा सकती या फीस वृद्धि के नियम नहीं निर्धारित कर सकती।

पीठ ने कहा, “ऐसा नहीं है कि सरकार स्कूलों की ओर से वसूली जाने वाली फीस को विनियमित नहीं कर सकती। हालांकि, विनियमन की अनुमति केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि ऐसे स्कूल मुनाफाखोरी, शिक्षा के व्यावसायीकरण या ‘कैपिटेशन फीस’ वसूलने में लिप्त न हों।”

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उसने कहा कि सरकार की ओर से अपनाए जा सकने वाले विनियामक उपायों में यह भी शामिल होगा कि गैर-सहायता प्राप्त स्कूल अपने मुनाफे या अधिशेष राशि का इस्तेमाल संस्थान‍ों के लाभ के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए न करें।

पीठ ने कहा कि फीस संरचना स्कूलों में उपलब्ध बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं, शिक्षकों एवं कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन तथा संस्थान के विस्तार या बेहतरी की भावी योजनाओं को ध्यान में रखते हुए तय की जानी चाहिए।

पीठ शिक्षा निदेशालय और विभिन्न छात्रों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश की पीठ के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत ब्लूबेल्स इंटरनेशनल स्कूल और लीलावती विद्या मंदिर पर शैक्षणिक सत्र 2017-18 के लिए फीस बढ़ाने पर लगाई गई रोक रद्द कर दी गई थी।

पीठ ने कहा कि वह एकल न्यायाधीश की पीठ के इस निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत है कि किसी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल की ओर से वसूली जाने वाली फीस के निर्धारण में शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप का दायरा उस मामले तक सीमित है, जिसमें संस्थान ‘कैपिटेशन शुल्क’ वसूलने या मुनाफाखोरी में लिप्त है।

उसने कहा कि अगर स्कूलों की ओर से दाखिल किए जाने वाले फीस विवरण की जांच करने पर शिक्षा निदेशालय को पता चलता है कि उनकी ओर से वसूली गई राशि कानूनी प्रावधानों के अनुरूप खर्च नहीं की जा रही है, तो संबंधित स्कूल के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है।

पीठ ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि संबंधित स्कूल मुनाफाखोरी या व्यावसायीकरण या ‘कैपिटेशन शुल्क’ वसूलने में लिप्त न हो तथा स्कूल द्वारा अर्जित मुनाफा या अधिशेष राशि केवल संस्थान की बेहतरी और शिक्षा से संबंधित अन्य उद्देश्यों के लिए खर्च की जाए तथा उसे प्रबंधन के किसी अन्य व्यवसाय या व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए न लगाया जाए।

भाषा पारुल अविनाश

अविनाश


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