डायबिटीज और मोटापे की दवाओं का कोरोना के इलाज में किया जा सकता है इस्तेमाल, IISER के रिसर्च में सामने आयी ये बात

मधुमेह, मोटापे की दवाओं का कोविड-19 के उपचार में किया जा सकता है इस्तेमाल: अनुसंधानकर्ता

डायबिटीज और मोटापे की दवाओं का कोरोना के इलाज में किया जा सकता है इस्तेमाल, IISER के रिसर्च में सामने आयी ये बात
Modified Date: November 29, 2022 / 08:53 pm IST
Published Date: October 11, 2021 7:03 pm IST

नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर (भाषा) मधुमेह, मोटापे और बढ़ती उम्र संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मौजूदा दवाओं का उपयोग संभावित रूप से कोविड-19 के इलाज के लिए किया जा सकता है। यह बात भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर), भोपाल के एक अनुसंधान में सामने आयी है।

टीम ने हाल ही में कोविड-19, उम्र बढ़ने और मधुमेह के बीच जैव-आणविक संबंधों की समीक्षा प्रकाशित की है। समीक्षा को ‘मॉलिक्यूलर एंड सेल्युलर बायोकैमिस्ट्री’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है और यह कोविड-19 चिकित्सा विज्ञान में भविष्य की दिशा में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

आईआईएसईआर, भोपाल के इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन सेंटर फॉर एंटरप्रेन्योरशिप (आईआईसीई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमजद हुसैन ने कहा, ‘‘ऐसे में जब लगभग दो साल से कोविड-19 महामारी दुनिया को प्रभावित किये हुए है, हम धीरे-धीरे वायरस और उसके काम करने के तरीके को समझने लगे हैं। अब यह ज्ञात है कि वायरल संक्रमण का प्रभाव अधिक आयु वाली आबादी और मधुमेह से पीड़ितों पर अधिक होता है।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘कोविड-19 संक्रमण के अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिणामों पर बढ़ती उम्र संबंधी बीमारियों और मधुमेह के प्रभावों पर दुनिया भर में अध्ययन किए जा रहे हैं।’’ प्रकाशित समीक्षा से पता चलता है कि मधुमेह, बढ़ती उम्र संबंधी बीमारियां और कोविड-19 की स्थितियां ऑक्सीडेटिव तनाव से जुड़ी हैं। साथ ही प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में कमी और उनसे उत्पन्न होने वाली जटिलताओं से हृदय संबंधी विकार, नेत्र रोग, तंत्रिका रोग और गुर्दे की समस्याओं जैसी कई अन्य बीमारियों की शुरुआत होती है।

हुसैन ने बताया,’हमारे पास रैपामाइसिन जैसी कुछ मौजूदा संभावित एंटी-एजिंग दवाओं के भी सबूत हैं, जिन्हें इन बीमारियों से जुड़े सामान्य जैव रासायनिक मार्गों के कारण कोविड-19 उपचार के लिए इनके इस्तेमाल की संभावना खोजी जा सकती है। ऐसा ही एक और उदाहरण एक दवा मेटफॉर्मिन है जिसे आमतौर पर रक्त शर्करा नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।’’

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वैज्ञानिकों ने यह दिखाने के लिए कम्प्यूटेशनल अध्ययन भी किया है कि कोशिका झिल्ली में मौजूद लिपिड कोरोनावायरस संक्रामकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रमुख शोधकर्ता ने कहा, ‘संभावित यौगिकों के मौजूदा पूल से प्रभावी चिकित्सा विज्ञान का चयन करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि एक नई दवा की खोज और इसकी मंजूरी में अधिक समय लगता है।’

वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि करक्यूमिन और रेस्वेराट्रोल जैसे प्राकृतिक यौगिकों और मौजूदा दवाओं जैसे मेटफॉर्मिन और रैपामाइसी में कोविड-19 और पोस्ट-कोरोनावायरस सिंड्रोम के उपचार के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण किए जाने की क्षमता है।

 


लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com