मिसिंग समुदाय के विस्थापित लोगों को 70 साल बाद असम में मिलेंगे नए घर

मिसिंग समुदाय के विस्थापित लोगों को 70 साल बाद असम में मिलेंगे नए घर

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  • Publish Date - July 17, 2021 / 02:15 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:52 PM IST

गुवाहाटी, 17 जुलाई (भाषा) सत्तर साल पहले ब्रह्मपुत्र नदी के रास्ता बदलने से विस्थापित हुए मिसिंग समुदाय के लगभग 12,000 लोगों को असम में तिनसुकिया जिला स्थित राष्ट्रीय उद्यान के बाहर नए घर मिलने की संभावना है, जहां वे अभी रह रहे हैं।

आधिकारिक बयान में कहा गया कि डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र अंतर्गत लाइका और दोधिया गांवों के मिसिंग समुदाय के लोगों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार जल्द अधिसूचना जारी करेगी।

मामला एक उच्चस्तरीय बैठक में उठा, जिसमें वन अधिकार अधिनियम 2006 से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। शुक्रवार को जारी बयान में कहा गया, ‘‘तिनसुकिया जिले में डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र अंतर्गत लाइका और दोधिया में रह रहे लोगों के पुनर्वास के मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई। वन विभाग इस संबंध (पुनर्वास) में जल्द अधिसूचना जारी करेगा।’’

विस्थापित हुए इन लोगों के दर्द की दास्तां 1950 से बनी हुई है, जब एक भीषण भूकंप के बाद ब्रह्मपुत्र नदी ने मार्ग बदल लिया था और अरुणाचल प्रदेश सीमा से लगे मुरकोंगसेलेक के 75 घरों में रहनेवाले लोग बेघर हो गए थे। यह घटना दोबारा 1957 में तब घटित हुई, जब नदी के क्षरण के कारण डिब्रूगढ़ जिले के रहमारिया राजस्व क्षेत्र के ओकलैंड इलाके के 90 घरों में रहनेवाले लोग बेघर हो गए और वहां से निकलकर डिब्रू आरक्षित वन में शरण लेने के लिए मजबूर हुए।

ये विस्थापित कृषक लोग नदी किनारे रहना पसंद करते थे और इन्हें ब्रह्मपुत्र का दक्षिणी किनारा पार करना पड़ा तथा वे इस इलाके में पहुंच गए जो छह नदियों- उत्तर की तरफ लोहित, दिबांग, दिसांग तथा दक्षिण की तरफ अनंतनाला, दनगोरी और डिब्रू- से घिरा है। खेती और मछली पकड़ने पर निर्भर यह कृषक समुदाय बाढ़ के कारण होने वाले क्षरण की वजह से आजीविका के लिए वन में भटकने लगा।

समय बीतने के साथ 1950 के दशक के दो मूल गांव लाइका और दोधिया अब छह बस्तियों में फैल गए हैं, जहां 2,600 परिवारों में करीब 12,000 लोग रहते हैं। हालांकि, समस्या 1999 में शुरू हुई जब जंगल को डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया और संरक्षित इलाके के अंदर इंसानों का रहना अवैध हो गया। तब से कई सरकारें आईं और गईं लेकिन इन लोगों की समस्या के समाधान के लिए कुछ खास नहीं हो सका।

भाषा नेत्रपाल दिलीप

दिलीप