किसी संप्रभु देश में प्रवेश कभी प्रवर्तनीय मौलिक अधिकार नहीं हो सकता : केंद्र ने न्यायालय से कहा |

किसी संप्रभु देश में प्रवेश कभी प्रवर्तनीय मौलिक अधिकार नहीं हो सकता : केंद्र ने न्यायालय से कहा

किसी संप्रभु देश में प्रवेश कभी प्रवर्तनीय मौलिक अधिकार नहीं हो सकता : केंद्र ने न्यायालय से कहा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:51 PM IST, Published Date : May 11, 2022/9:30 pm IST

नयी दिल्ली, 11 मई (भाषा) केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि किसी भी संप्रभु देश में प्रवेश कभी भी लागू करने योग्य मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है और भारत ने 2003 से तबलीगी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है।

शीर्ष अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें तबलीगी जमात की गतिविधियों में कथित रूप से शामिल होने को लेकर 35 देशों के कई नागरिकों की भारत यात्रा पर 10 साल के लिए प्रतिबंध लगाते हुए उन्हें कालीसूची में डाले जाने के आदेश को चुनौती दी गई है।

केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि एक संप्रभु देश में प्रवेश करने का अधिकार, उस राष्ट्र के कानून के विपरीत, संविधान के अनुच्छेद 21 में कभी नहीं पाया जा सकता है।

याचिकाओं के “सुनवाई योग्य न होने” की दलील देते हुए मेहता ने कहा कि कालीसूची से नाम हटाने के लिये याचिकाकर्ता अधिकारियों के समक्ष प्रतिवेदन दे सकते हैं।

सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को बताया, “(अनुच्छेद) 21 को देखते हैं। कानून के अनुसार किसी को भी उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है। एक संप्रभु देश में प्रवेश करने का अधिकार, उस देश के कानून के विपरीत, कभी भी अनुच्छेद 21 में नहीं पाया जा सकता है।” पीठ में न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला भी शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने यह मुद्दा उठाया है कि उनके खिलाफ काली सूची में डालने का आदेश पारित करने से पहले उनकी बात नहीं सुनी गई या सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।

पीठ ने कहा, “तर्क यह है कि यह आदेश तब पारित किया गया था जब वे भारत में थे और इसलिए, अनुच्छेद 21 उनके लिए उपलब्ध था। यही तर्क है।”

मेहता ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी को भी उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने अपनी दलील में कहा, “सरकार के प्रतिबंध के बावजूद भारत में रहने का अधिकार कभी भी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार नहीं दे सकता है। काली सूची में डालने से उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित नहीं हुई है।” बहस बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी।

उन्होंने कहा कि तब्लीगी गतिविधि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई देशों द्वारा प्रतिबंधित है और 2003 से भारत ने भी इस पर प्रतिबंध लगा दिया है।

मेहता ने कहा कि किसी भी संप्रभु देश में प्रवेश कभी भी लागू करने योग्य मौलिक अधिकार नहीं हो सकता।

कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सी यू सिंह ने पीठ से कहा कि मुद्दा यह है कि क्या वैध वीजा पर देश में प्रवेश करने वाले संबंधित व्यक्ति को बिना किसी सूचना, पूछताछ या नोटिस के काली सूची में डालने का आदेश जारी किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता प्राधिकरण को अपना प्रतिनिधित्व दे सकते हैं जिस पर विचार किया जाएगा।

वकील ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को काली सूची में डालने का आदेश नहीं दिया गया है। पीठ ने कहा, “… सुझाव दिया गया है कि आप प्रतिवेदन दें और यदि यह सरकार को स्वीकार्य है, तो सरकार विचार करेगी। क्योंकि, भविष्य में प्रवेश सरकार का विशेषाधिकार है।”

पीठ ने कहा कि भले ही वह काली सूची में डालने के आदेश को रद्द कर दे, लेकिन भविष्य के वीजा आवेदन सरकार के विशेषाधिकार और विवेक पर निर्भर करेगा।

पीठ ने कहा, “यह एक अच्छा प्रस्ताव है, ऐसा प्रतीत होता है।” उसने कहा कि अगर याचिकाकर्ता प्राधिकरण को प्रतिवेदन देंगे तो उचित मामलों में समाधान हो सकता है।

भाषा

प्रशांत उमा

उमा

 

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