विषय-वस्तु हटाने के नोटिस के खिलाफ एक्स कॉर्प की दलील, केंद्र ने भाषा पर आपत्ति जताई

विषय-वस्तु हटाने के नोटिस के खिलाफ एक्स कॉर्प की दलील, केंद्र ने भाषा पर आपत्ति जताई

विषय-वस्तु हटाने के नोटिस के खिलाफ एक्स कॉर्प की दलील, केंद्र ने भाषा पर आपत्ति जताई
Modified Date: July 1, 2025 / 10:41 pm IST
Published Date: July 1, 2025 10:41 pm IST

बेंगलुरु, एक जुलाई (भाषा) सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ ने विषय-वस्तु हटाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत नोटिस जारी करने के सरकारी अधिकारियों के अधिकार को चुनौती देते हुए मंगलवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय में दलील देते हुए कहा कि ‘‘क्या होगा यदि हर टॉम, डिक और हैरी अधिकारी नोटिस भेजे?’’

इस पर केंद्र सरकार और अदालत ने इस भाषा पर कड़ी आपत्ति जताई।

‘एक्स’ कॉर्प ने अदालत को बताया कि उसे हाल ही में रेल मंत्रालय से एक नोटिस मिला है, जिसमें उस वीडियो को हटाने को कहा गया है जिसमें हैदराबाद में एक महिला रेल पटरी पर कार चलाते हुए दिख रही है।

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कंपनी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता के जी राघवन ने इसे आधिकारिक शक्तियों का दुरुपयोग करार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘क्या होगा अगर हर टॉम, डिक और हैरी अधिकारी मुझे नोटिस भेजे? देखिए इसका किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है।’’

राघवन ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह की सामग्री गैरकानूनी है। उन्होंने कहा, ‘‘किसी महिला ने रेल पटरी पर कार चलायी। मिलॉर्ड जानते हैं कि कुत्ते का आदमी को काटना खबर नहीं है, लेकिन आदमी का कुत्ते को काटना खबर है।’’

भारत संघ की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस्तेमाल की गई भाषा पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा, ‘‘वे अधिकारी हैं, टॉम, डिक और हैरी नहीं। वे कानूनी प्राधिकार वाले वैधानिक अधिकारी हैं। अंतरराष्ट्रीय इकाइयों को इस तरह का अहंकार नहीं दिखाना चाहिए।’’

मेहता ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी सोशल मीडिया मंच को बिना विनियमन के संचालन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वे अन्य देशों के कानूनों का पालन करते हैं और उन्हें भारत में भी ऐसा ही करना चाहिए।

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने भी ऐसी टिप्पणी पर असहमति जतायी और केंद्र सरकार के अधिकारियों के कद को रेखांकित करते हुए कहा, ‘‘मुझे इस पर आपत्ति है। वे भारत संघ के अधिकारी हैं।’’

‘एक्स’ कॉर्प ने इस न्यायिक घोषणा का अनुरोध किया है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) सरकारी अधिकारियों को ‘ब्लॉकिंग’ आदेश जारी करने का अधिकार नहीं देती है। उसने दलील दी कि ऐसे आदेशों को प्रासंगिक ‘ब्लॉकिंग’ नियमों के साथ अधिनियम की धारा 69ए में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, कंपनी ने अदालत से अनुरोध किया है कि वह सरकारी मंत्रालयों को निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार जारी नहीं किए गए ब्लॉकिंग आदेशों के आधार पर उसके खिलाफ दंडात्मक या प्रतिकूल कार्रवाई करने से रोके।

हस्तक्षेप अर्जी दायर करने वाले डिजिटल मीडिया घरानों की एक एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सोंधी ने कहा कि जब मंचों को सामग्री हटाने का आदेश दिया जाता है तो ‘कंटेंट क्रिएटर’ सीधे प्रभावित होते हैं।

जब पीठ ने पूछा कि सरकार और ‘एक्स’ के बीच के मामले में एसोसिएशन किस प्रकार असंतुष्ट है, तो सोंधी ने जवाब दिया कि सामग्री हटाने का आदेश उनकी प्रकाशित सामग्री को प्रभावित करते हैं।

हालांकि, मेहता ने हस्तक्षेप पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ‘एक्स’ कॉर्प एक सक्षम अंतरराष्ट्रीय कंपनी है और उसे तीसरे पक्ष के समर्थन की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘मैं ट्विटर के समर्थन में दायर किसी भी तीसरे पक्ष के आवेदन पर आपत्ति जताता हूं।’

पीठ ने मामले की अंतिम सुनवाई आठ जुलाई को निर्धारित की और ‘एक्स’ कॉर्प को अपनी याचिका में संशोधन करके विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों को इसमें शामिल करने की अनुमति दी।

भारत संघ को अगली सुनवाई से पहले अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

भाषा

अमित सुरेश

सुरेश


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