नवरात्रि के चौथे दिन नवदुर्गा के चौथे रूप मां कूष्मांडा की पूजा

नवरात्रि के चौथे दिन नवदुर्गा के चौथे रूप मां कूष्मांडा की पूजा

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  • Publish Date - September 24, 2017 / 06:36 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:57 PM IST

नवरात्रि के चौथे दिन आज नवदुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा-आराधना की जा रही है। कूष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़े। मां को बलियों में कुम्हड़े की बलि सबसे ज्यादा प्रिय है। इसलिए इन्हें कूष्मांडा देवी कहा जाता है। कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। इन अष्ट भुजाओं में कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है। मां के पास इन सभी चीजों के अलावा हाथ में अमृत कलश भी है। मां कूष्मांडा को पापों की विनाशिनी भी कहा जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर इनकी आराधना के वक्त भक्ति में लीन होकर श्रद्धालु अपने पापों के लिए माता से मन से वरदान मांगे तो पापों का नाश होता है, भक्तों को मुक्ति मिलती है। अपनी मंद-मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम देवी कुष्मांडा पड़ा. ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं. ज्योतिष में मां कुष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से है. इनकी भक्ति से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्मांडा की उपासना को लेकर ऐसी मान्यता है कि इनकी आराधना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होते हैं और व्रतियों की आयु और उनके यश में वृद्धि होती है। माता की उपासना से माता की कृपा स्वरूप उनके भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति होती है, बुद्धि और कौशल का विकास होता है।

मां कूष्मांडा का वाहन सिंह है और मां कूष्मांडा देवी को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ी भी अर्पित करना चाहिए।  माता कुष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुए का भोग लगाकर किसी भी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को इसका प्रसाद देना चाहिए। रविवार को पूजा का समय सुबह 7 बजे से दिन के 11.20 बजे तक पूजा का मुहूर्त है. ऐसे भक्त जो नियमानुसार पूजा करते हैं, नवरात्रि का व्रत रखते हैं, वह सुबह 11.20 तक पूजा की शुरुआत कर सकते हैं. बाकि भक्त दिन भर पूजा कर सकते हैं.

 

हरे कपड़े पहनकर मां कुष्मांडा का पूजन करें. पूजन के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ और कुम्हड़ा अर्पित करें. इसके बाद उनके मुख्य मंत्र

‘ऊं कुष्मांडा देव्यै नमः’ का 108 बार जाप करें. चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं.