गोवा सरकार की मिट्टी की मूर्तियों को बढ़ावा देने की पहल से पारंपरिक कारीगरों को संजीवनी मिली

गोवा सरकार की मिट्टी की मूर्तियों को बढ़ावा देने की पहल से पारंपरिक कारीगरों को संजीवनी मिली

गोवा सरकार की मिट्टी की मूर्तियों को बढ़ावा देने की पहल से पारंपरिक कारीगरों को संजीवनी मिली
Modified Date: August 23, 2025 / 06:48 pm IST
Published Date: August 23, 2025 6:48 pm IST

पणजी, 23 अगस्त (भाषा) गणेश उत्सव के नजदीक आने और प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों पर प्रतिबंध के बीच, मिट्टी की मूर्ति बनाने वालों के लिए सरकार की सब्सिडी योजना ने गोवा के कारीगरों के लिये संजीवनी का काम किया है।

गोवा हस्तशिल्प, ग्रामीण एवं लघु उद्योग विकास निगम लिमिटेड (जीएचआरएसएसआईडीसी) के प्रबंध निदेशक दामोदर मोराजकर ने कहा कि सरकार ने पारंपरिक कारीगरों को समर्थन देने और उनकी कला को संरक्षित करने के लिए 250 मूर्तियों तक के लिए प्रति मिट्टी की मूर्ति 200 रुपये की सब्सिडी प्रदान करने की योजना शुरू की है।

‘पीटीआई वीडियो’ से बात करते हुए उन्होंने बताया कि यह योजना सांस्कृतिक और पर्यावरणीय चिंताओं से प्रेरित है।

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मोराजकर ने कहा, “पीओपी की मूर्तियां विसर्जन के दौरान नहीं घुलतीं और जलाशयों को प्रदूषित करती हैं। दूसरी ओर, मिट्टी की मूर्तियां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना आसानी से घुल जाती हैं।”

प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली सरकार इस योजना का बड़े पैमाने पर प्रचार कर रही है।

मोराजकर ने कहा कि इस योजना के तहत गोवा के 450 कारीगर निगम में पंजीकृत हैं।

उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को देखते हुए पिछले दो वर्षों में वित्तीय सहायता 100 रुपये से बढ़ाकर 200 रुपये कर दी गई है।

उन्होंने कहा कि यह योजना कारीगरों को मिट्टी मिश्रण मशीनें खरीदने में भी मदद करती है, जो मूर्तियां बनाने से पहले कच्चा माल तैयार करने के लिए आवश्यक हैं।

अधिकारी ने कहा कि कुछ समुदायों में शिल्पकला पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और इस योजना का उद्देश्य यह भी सुनिश्चित करना है कि वे अपनी परंपराओं को न त्यागें।

कारीगरों के लिए यह योजना जीवनयापन का साधन और अपनी कला को जीवित रखने का माध्यम बन गई है।

अपने भाइयों के साथ पांच दशकों से मूर्तियां बना रहे रमेश हरमलकर ने कहा कि सरकार द्वारा समय पर दी गई सब्सिडी और मिट्टी-मिश्रण मशीन के प्रावधान से उनके काम आसान हो गए हैं।

हरमलकर बंधु पणजी के पास चिम्बेल गांव में रहते हैं।

उन्होंने कहा, “इस योजना से कारीगरों को मूर्तियों की कीमतों को नियंत्रित करने में भी मदद मिली है। अगर सरकार सब्सिडी नहीं देती, तो हमें कच्चे माल की बढ़ी हुई लागत को पूरा करने के लिए मूर्तियों की कीमतें बढ़ानी पड़तीं।”

उन्होंने बताया कि मूर्तियों की कीमत ऊंचाई और अन्य पहलुओं के आधार पर 1,500 रुपये से 50,000 रुपये के बीच होती है।

रमेश के भाई सुनील, जो प्रति सीजन 400-500 मूर्तियां बनाते हैं, ने बताया कि उनका काम त्योहारों के सीजन से महीनों पहले शुरू हो जाता है।

उन्होंने कहा, “हम यह काम तीन महीने पहले शुरू कर देते हैं, क्योंकि हमें मिट्टी को भिगोना पड़ता है, जिसे फिर पगमिल (मिश्रण मशीन) में मिलाया जाता है। मशीन की वजह से काम तेज हो जाता है।”

उत्तरी गोवा के मायेम गांव में रूपेश शेट और उनका परिवार जून से ही अपना काम शुरू कर देते हैं, और सुंदर मूर्तियों का आकार देने से पहले मिट्टी को वर्षा के पानी में नरम करते हैं।

उन्होंने कहा, “सरकार की सब्सिडी से हमें कच्चा माल जुटाने में मदद मिलती है। मेरी पत्नी और बेटे समेत मेरा पूरा परिवार इस काम में लगा हुआ है। हम दिन-रात काम करते हैं। हमें मिलने वाले ऑर्डर के अनुसार, हम लगभग 800 मूर्तियां बनाते हैं।”

शेट ने कहा, “सभी को केवल मिट्टी की मूर्तियों का ही उपयोग करना चाहिए, पीओपी का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस तरह, विसर्जन के बाद मिट्टी पुनः मिट्टी में मिल जाती है।”

भाषा

प्रशांत दिलीप

दिलीप


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