जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक राज्यपाल ने लौटाया, कांग्रेस ने कहा- यह भाजपा का रचा खेल
जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक राज्यपाल ने लौटाया, कांग्रेस ने कहा- यह भाजपा का रचा खेल
देहरादून, 18 दिसंबर (भाषा) जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून को और कड़ा बनाने वाले उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2025 को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह द्वारा वापस लौटाए जाने को कुछ राजनीतिक दलों ने समाज के एक तबके को निशाना बनाने की राज्य सरकार की कोशिश पर ‘एक करारा तमाचा’ बताया जबकि कांग्रेस ने इसे इस मुद्दे को आगामी चुनाव तक जीवित रखने के लिए भाजपा द्वारा ‘रचा गया खेल’ बताया।
गैरसैंण में हुए विधानसभा के मानसून सत्र में इस संशोधन विधेयक को पारित किया गया था जिसके बाद इसे मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया था। हालांकि, राज्यपाल ने इसे एक संदेश के साथ राज्य सरकार को वापस लौटा दिया।
उत्तराखंड लोकभवन सूत्रों के अनुसार, मसौदे की भाषा में कुछ लिपिकीय त्रुटियों के कारण इस विधेयक को प्रदेश के विधायी विभाग को वापस कर दिया गया है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी (लेनिनवादी) ने आरोप लगाया कि हर चीज का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रवृत्ति है और इनके हरेक काम का मकसद समाज के एक खास तबके को निशाना बनाना है।
भाकपा (माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने राज्यपाल द्वारा संशोधन विधेयक को वापस लौटाए जाने को एक अच्छा कदम बताते हुए कहा, ‘‘इनके (भाजपा के) ऐसे कदमों पर रोक लगनी चाहिए और यह अच्छी बात है कि कम से कम एक स्तर पर तो सरकार को आइना दिखाया गया। यह राज्य सरकार के मुंह पर एक तमाचा है और उसे अब अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि एक खास तबके को निशाना बनाने के चक्कर में वह विधेयक की भाषा को सही तरीके से नहीं लिख पा रही है।’’
हरिद्वार जिले की लक्सर सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक मोहम्मद शहजाद ने कहा कि वह तो पहले से ही इस विधेयक के विरोध में थे और अब राज्यपाल ने इसे मंजूरी न देकर एक बढ़िया काम किया है। उन्होंने कहा, ‘‘हम पहले से ही कह रहे हैं कि ये (भाजपा सरकार) केवल मुसलमान समाज को निशाना बनाकर विधेयक और कानून लाते हैं। राज्यपाल ने विधेयक लौटाकर बहुत सराहनीय काम किया है।’’
हालांकि, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने विधेयक लौटाए जाने को पुष्कर सिंह धामी की भाजपा सरकार द्वारा रचा गया एक खेल बताया और कहा कि वह इस मुद्दे को 2027 तक जीवित रखना चाहती है ताकि ऐन चुनाव से पहले इसे दोबारा पारित करवा कर ध्रुवीकरण के जरिए फिर सत्ता पर काबिज हो सके।
कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (संगठन) सूर्यकांत धस्माना ने कहा, ‘‘भाजपा द्वारा लाए गए समान नागरिक संहिता सहित अन्य मुद्दों का समाज पर कोई असर नहीं हुआ और इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान जनता का ध्रुवीकरण करने के लिए भाजपा वाले चुनाव से पहले फिर कुछ और संशोधनों के साथ इस विधेयक को दोबारा पारित करवाएंगे। यह भाजपा का ही रचा हुआ एक खेल है।’’
धस्माना ने यह भी आरोप लगाया कि लोकभवन जैसी सांविधानिक संस्थाओं को अपने प्रभाव में लेना भाजपा की प्रवृत्ति रही है।
प्रदेश में 2018 से लागू धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में दूसरी बार संशोधन के लिए यह विधेयक लाया गया था। इससे पहले इस अधिनियम में पहला संशोधन 2022 में किया गया था जब पुष्कर सिंह धामी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभाला था।
उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2025 में जबरन धर्मांतरण के लिए अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा और 10 लाख रुपये तक के भारी जुर्माने का प्रावधान है। वर्तमान में इस अपराध के लिए उत्तराखंड में अधिकतम 10 साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
विधेयक के तहत सामान्य मामले में तीन से 10 वर्ष, संवेदनशील वर्ग से जुड़े मामलों में पांच से 14 वर्ष तथा गंभीर मामलों में 20 वर्ष या आजीवन कारावास तक की सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है।
संशोधन विधेयक में धोखाधड़ी, प्रलोभन या दबाव से होने वाले धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए प्रावधानों को पहले से और कड़ा कर दिया गया है। प्रलोभन की परिभाषा को विस्तृत करते हुए उपहार, नकद/वस्तु लाभ, रोजगार, निःशुल्क शिक्षा, विवाह का वादा, धार्मिक आस्था को आहत करना या दूसरे धर्म का महिमामंडन, सभी को अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है।
इसमें डिजिटल साधनों पर रोक लगाते हुए सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप या किसी भी ऑनलाइन माध्यम से धर्मांतरण के लिए प्रचार करने या उकसाने जैसे कार्यों को दंडनीय बनाये जाने का प्रावधान है।
राज्यपाल द्वारा विधेयक को लौटाने के बाद राज्य सरकार को अब विधानसभा से इसे दोबारा पारित करवाना पड़ेगा या वह इसे अध्यादेश के जरिए भी लागू कर सकती है।
भाषा दीप्ति सुरभि
सुरभि

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