सरकार ने मनरेगा को धीरे-धीरे कमजोर किया, गरीब और किसान विरोधी सोच : कांग्रेस

सरकार ने मनरेगा को धीरे-धीरे कमजोर किया, गरीब और किसान विरोधी सोच : कांग्रेस

सरकार ने मनरेगा को धीरे-धीरे कमजोर किया, गरीब और किसान विरोधी सोच : कांग्रेस
Modified Date: December 17, 2025 / 06:35 pm IST
Published Date: December 17, 2025 6:35 pm IST

नयी दिल्ली, 17 दिसंबर (भाषा) कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर मनरेगा को धीरे-धीरे कमजोर करने का आरोप लगाते हुए बुधवार को कहा कि मौजूदा अधिनियम से महात्मा गांधी का नाम हटाते हुए नया विधेयक लाना सरकार की ‘‘गरीब, किसान और मजदूर विरोधी सोच’’ को दर्शाता है।

लोकसभा में ‘विकसित भारत-जी राम जी विधेयक, 2025’ पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद जयप्रकाश ने नये कानून में राज्यों के 40 प्रतिशत अंशदान वाले प्रावधान का उल्लेख किया और कहा कि सरकार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की तरह राज्यों पर 10 प्रतिशत भार ही रखना चाहिए।

इससे पहले, विधेयक को चर्चा और पारित कराने के लिए सदन में रखते हुए ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह विधेयक विकसित भारत के लिए विकसित गांवों के निर्माण का विधेयक है, जिसमें 100 दिन की रोजगार की गारंटी 125 दिन की कर दी गई है।

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उन्होंने कहा कि मनरेगा के स्थान पर लाया गया यह विधेयक केवल रोजगार का विधेयक नहीं है, बल्कि महात्मा गांधी के स्वावलंबी और रोजगारयुक्त गांव बनाने के सपनों का विधेयक है।

चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सांसद जयप्रकाश ने कहा कि 2005 में मनरेगा कानून आया था तो उस समय विपक्ष में रही भाजपा की मांग को मानते हुए तत्कालीन संप्रग सरकार ने इसे संसदीय समिति को भेजने पर सहमति जताई थी तथा सभी दलों के नेताओं के विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में लाया गया।

कांग्रेस सदस्य ने कहा कि जब 2005 में विधेयक को प्रवर समिति को भेजा गया था, तो अब इसे संसदीय समिति को भेजने की मांग को क्यों नहीं माना जा रहा।

उन्होंने अधिनियम का नाम बदलने पर भी आपत्ति जताते हुए कहा, ‘‘(अधिनियम से)महात्मा गांधी का नाम हटाना इस देश में सबसे बड़ा अपराध है।’’

जयप्रकाश ने कहा, ‘‘इस सरकार को या तो महात्मा गांधी के नाम से परेशानी है या गांधी उपनाम से परेशानी है? वो तो मंत्री बताएंगे।’’

नए कानून में 100 दिन के रोजगार की गारंटी की जगह 125 दिन के रोजगार की गारंटी का प्रावधान है।

उन्होंने कहा कि अगर रोजगार के कार्य दिवस 125 करने थे तो इसके लिए अधिनियम का नाम बदलने की क्या जरूरत है।

कांग्रेस सांसद ने यह भी कहा कि संसद की स्थायी समिति ने तो 150 दिन का रोजगार देने की मांग की थी, सरकार ने इसे भी स्वीकार नहीं किया।

उन्होंने कहा कि जब मनरेगा लागू हुआ था, उस समय वर्तमान प्रधानमंत्री (नरेन्द्र मोदी) गुजरात के मुख्यमंत्री थे और 100 दिन के रोजगार की गारंटी देने वाले कानून के विरोध में थे।

जयप्रकाश ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा, ‘‘ये लोग गरीब, किसान और मजदूर विरोधी हैं।’’

उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के समय मनरेगा कानून लाये जाने से पहले पूरी दुनिया में ऐसा कानून नहीं था।

कांग्रेस सदस्य ने कहा, ‘‘हमने मनरेगा के माध्यम से रोजगार की गारंटी दी, इस सरकार ने तो हामी भरने के बाद भी एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कानूनी गारंटी भी नहीं दी।’’

उन्होंने मनरेगा योजना में पिछले कुछ सालों में बजट की कमी किये जाने और भुगतान में देरी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि योजना का आधारभूत ढांचा धीरे-धीरे खोखला हो गया है और इसे क्रमिक रूप से कमजोर कर दिया गया।

उन्होंने कहा कि मनरेगा अधिनियम में लिखा है कि 100 दिन अगर रोजगार नहीं मिले तो 15 दिन का बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। उन्होंने अपने गृह राज्य हरियाणा का उल्लेख करते हुए कहा कि जिन लाखों लोगों को रोजगार नहीं मिला, उन्हें मौजूदा सरकार ने कितना बेरोजगारी भत्ता दिया है।

जयप्रकाश ने कहा, ‘‘हमारी मांग है कि मनरेगा योजना को खेती के साथ जोड़ा जाए जिससे किसानों और मजदूरों, दोनों को लाभ होगा।’’

उन्होंने कहा कि हरियाणा जैसे राज्य पहले ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं, ऐसे में नए अधिनियम के तहत रोजगार गारंटी के लिए उन पर 40 प्रतिशत बोझ डालने से दबाव और बढ़ेगा।

जयप्रकाश ने कहा, ‘‘कांग्रेस के समय की मनरेगा योजना की तरह ही राज्यों पर 10 प्रतिशत भार ही रहना चाहिए।’’

भाषा वैभव सुभाष

सुभाष


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