नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि लोगों को उतावलेपन में केवल कुछ अखबारी खबरों के आधार पर आधी-अधूरी याचिकाएं दायर करने से बचना चाहिए। न्यायालय ने इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के जरिए भारत में कुछ लोगों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति का गठन करने के अपने फैसले में यह टिप्पणी की।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं याचिका दायर करने वाले व्यक्ति द्वारा समर्थित मुद्दे में मदद नहीं करती हैं बल्कि मकसद का नुकसान पहुंचाती हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘ हम समझते हैं कि इन याचिकाओं में लगाए गए आरोप उन मामलों से संबंधित हैं जिनके बारे में आम नागरिकों को समाचार एजेंसियों द्वारा की गई जांच रिपोर्टिंग के अलावा कोई जानकारी नहीं होती लेकिन दायर की गई कुछ याचिकाओं की गुणवत्ता को देखते हुए, हम यह टिप्पणी करने के लिए बाध्य हैं कि लोगों को केवल अखबारों की कुछ खबरों पर आधी अधूरी याचिकाएं दायर नहीं करनी चाहिए।’
पीठ ने कहा कि यही कारण है कि अदालतों में, विशेष रूप से इस न्यायालय में, जो देश में फैसला करने वाला अंतिम निकाय है, इस तरह की याचिकाओं को जल्दबाजी में दायर करने से हतोत्साहित करने की जरूरत है।
हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि अदालत को समाचार एजेंसियों पर भरोसा नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के प्रत्येक स्तंभ की राजव्यवस्था में भूमिका पर जोर देना है।
पीठ ने कहा, ‘‘ समाचार एजेंसियां तथ्यों की रिपोर्ट देती हैं और उन मुद्दों को सामने लाती हैं जो अन्यथा सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आ सकते … लेकिन सामान्य तौर पर समाचार पत्रों की खबरों को तैयार याचिकाओं के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए, जिन्हें अदालत में दायर किया जा सकता हो।’’
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अविनाश अनूप
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