सीएसआर में पर्यावरणीय जिम्मेदारी का समावेश अनिवार्य : उच्चतम न्यायालय

सीएसआर में पर्यावरणीय जिम्मेदारी का समावेश अनिवार्य : उच्चतम न्यायालय

सीएसआर में पर्यावरणीय जिम्मेदारी का समावेश अनिवार्य : उच्चतम न्यायालय
Modified Date: December 20, 2025 / 03:52 pm IST
Published Date: December 20, 2025 3:52 pm IST

नयी दिल्ली, 20 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) को कॉरपोरेट पर्यावरणीय जिम्मेदारी से अलग नहीं किया जा सकता और कंपनियां पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य जीवों की अनदेखी कर खुद को सामाजिक रूप से जिम्मेदार नहीं कह सकतीं।

न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए. एस. चांदुरकर की पीठ ने विलुप्तप्राय प्रजाति गोडावण (‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’) के संरक्षण के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए। यह प्रजाति राजस्थान और गुजरात में गैर-नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों के संचालन के कारण खतरे में है।

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए ‘सामाजिक उत्तरदायित्व’ की कॉरपोरेट परिभाषा में पर्यावरणीय जिम्मेदारी शामिल होनी चाहिए। कंपनियां पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य जीवों के समान दावों की अनदेखी करते हुए स्वयं को सामाजिक रूप से जिम्मेदार नहीं कह सकतीं।’’

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अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 51ए(जी) के तहत वन, झीलों, नदियों और वन्यजीवों समेत प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं संवर्धन करना तथा सभी जीवों के प्रति करुणा रखना प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य है।

पीठ ने कहा, ‘‘सीएसआर निधि इस कर्तव्य की मूर्त अभिव्यक्ति है, इसलिए पर्यावरण संरक्षण के लिए धन का आवंटन स्वैच्छिक दान नहीं, बल्कि एक संवैधानिक दायित्व की पूर्ति है।’’

उसने कहा कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत संसद ने इस कर्तव्य को संस्थागत रूप दिया है, जिसके जरिए कंपनियों के लिए उनकी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत विशिष्ट वित्तीय मानक अनिवार्य किए गए हैं।

न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान इस सिद्धांत को संहिताबद्ध करता है कि कॉरपोरेट लाभ केवल शेयरधारकों की निजी संपत्ति नहीं है, बल्कि उसका एक हिस्सा उस समाज का भी है, जो इस लाभ को संभव बनाता है।

उसने कहा कि ऐतिहासिक रूप से निदेशकों का मुख्य कर्तव्य शेयरधारकों के लाभ को अधिकतम करना था, लेकिन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 166(2) ने इस संकीर्ण दृष्टिकोण को बदलते हुए व्यापक न्यासी दायित्व निर्धारित किया है।

पीठ ने कहा, “अब निदेशकों पर यह कानूनी दायित्व है कि वे न केवल सदस्यों के लिए, बल्कि कंपनी, उसके कर्मचारियों, शेयरधारकों, समुदाय और पर्यावरण संरक्षण के सर्वोत्तम हित में सद्भावना से कार्य करें।”

उसने कहा कि यह महत्वपूर्ण विस्तार इस तथ्य को स्वीकार करता है कि एक निगम समाज की एक इकाई है और उसकी ‘सामाजिक’ जिम्मेदारी उसके कार्यों से प्रभावित होने वाले व्यापक समुदाय के प्रति भी है।

अदालत ने कहा, ‘‘जहां खनन, विद्युत उत्पादन या बुनियादी ढांचा जैसी कॉरपोरेट गतिविधियां संकटग्रस्त प्रजातियों के आवास को खतरे में डालती हैं, वहां ‘प्रदूषक भुगतान करे’ सिद्धांत लागू होता है और कंपनी को प्रजाति संरक्षण की लागत वहन करनी होगी।’’

पीठ ने कहा कि संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा सर्वोपरि दायित्व है और कॉरपोरेट कर्तव्य केवल शेयरधारकों की रक्षा तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा इसमें शामिल होनी चाहिए।

अदालत ने कहा, “राजस्थान और गुजरात के प्राथमिक और गैर-प्राथमिक क्षेत्रों में कार्यरत गैर-नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि वे गोडावण के साथ पर्यावरण साझा करते हैं और उन्हें यह सोचकर काम करना चाहिए कि वे उसके आवास में अतिथि हैं।’’

यह आदेश पर्यावरणविद् एम. के. रंजीतसिंह द्वारा 2019 में दायर याचिका पर सुनाया गया, जिसमें गोडावण के संरक्षण के लिए कदम उठाए जाने का अनुरोध किया गया है।

भाषा सिम्मी दिलीप

दिलीप


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