कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव है लोक परंपराओं का संगम
कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव है लोक परंपराओं का संगम
कुरुक्षेत्र (हरियाणा), 17 नवंबर (भाषा) कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर का तट भारत की लोक परंपराओं के संगम में तब्दील हो गया है, जहां 15 नवंबर से पांच दिसंबर तक अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव जारी है।
यहां 21 दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव देश की लुप्त होती लोक विरासत के संरक्षण, संवर्धन और उत्सव के एक मंच के रूप में उभरा है, जिसमें प्रतिदिन हजारों लोग पहुंच रहे हैं।
रंग-बिरंगी पगड़ियां पहने लोक कलाकार ‘बीन, ढोल और नगाड़ों’ की लय पर नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
राजस्थानी ‘कच्छी घोड़ी’ मंडलियों, ‘बांसुरी’ वादकों और पारंपरिक ढोल वादकों समेत विभिन्न राज्यों के लोक कलाकारों ने उत्सव के माहौल में बेजोड़ ऊर्जा भर दी। उनकी प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और कई लोग ताल पर थिरकने से खुद को रोक नहीं पाए।
युवा, बुजुर्ग, परिवार और विदेशी पर्यटक, सभी इन धुनों पर झूमे।
यहां जारी महोत्सव के तीसरे दिन, भारत के विभिन्न राज्यों के लोक संगीत सुनने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक ब्रह्मसरोवर के दक्षिणी तट पर एकत्रित हुए।
सांस्कृतिक उत्सवों के साथ-साथ, सरस एवं शिल्प मेले में भारत भर से आए कारीगरों द्वारा लाए गए पारंपरिक हस्तशिल्प का असाधारण प्रदर्शन भी देखने को मिल रहा है।
इन कारीगरों में दिल्ली के दयाचंद भी शामिल हैं, जो पिछले 15 सालों से इस महोत्सव में हिस्सा ले रहे हैं। उन्होंने अपने स्टॉल पर गर्व से बताया कि हस्तशिल्प कला के प्रति उनके समर्पण के लिए उन्हें 2005 में प्रतिष्ठित राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था।
भाषा राजकुमार अमित
अमित

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