मुडा ‘‘घोटाले’’ पर चर्चा कराये जाने की मांग को लेकर कर्नाटक विधानसभा में तीखी नोकझोंक

मुडा ‘‘घोटाले’’ पर चर्चा कराये जाने की मांग को लेकर कर्नाटक विधानसभा में तीखी नोकझोंक

मुडा ‘‘घोटाले’’ पर चर्चा कराये जाने की मांग को लेकर कर्नाटक विधानसभा में तीखी नोकझोंक
Modified Date: July 24, 2024 / 05:50 pm IST
Published Date: July 24, 2024 5:50 pm IST

बेंगलुरु, 24 जुलाई (भाषा) मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) द्वारा भूखंड आवंटित करने में कथित फर्जीवाड़े के मामले पर चर्चा कराये जाने को लेकर बुधवार को कर्नाटक विधानसभा में सत्ता पक्ष और विपक्षी दल के बीच तीखी नोकझोंक हुई। इस मामले पर विधानसभा अध्यक्ष यू टी खादर ने विपक्ष के स्थगन प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

भूखंड प्राप्त करने वालों में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी पार्वती भी शामिल हैं।

सत्तारूढ़ कांग्रेस ने नियमों का हवाला देते हुए अध्यक्ष से इस मुद्दे पर चर्चा की अनुमति नहीं देने का आग्रह किया, जबकि विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दावा किया कि संदेह की सुई राज्य के ‘‘सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति’’ के परिवार की ओर इशारा कर रही है और मांग की कि चर्चा की अनुमति दी जाए।

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विपक्ष ने मामले की जांच के लिए जांच आयोग के गठन के पीछे राजनीतिक मकसद का भी आरोप लगाया और कहा कि इसका उद्देश्य सदन को इस मुद्दे पर बहस करने का मौका देने से रोकना है।

अध्यक्ष ने कहा, ‘‘दोनों पक्षों को सुनने के बाद, क्योंकि विपक्ष द्वारा दिया गया स्थगन नोटिस कोई अत्यावश्यक मामला नहीं है और आरोपों की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया गया है, साथ ही यह मामला तत्काल घटित नहीं हुआ है, इसलिए इसे खारिज कर दिया गया है।’’

यह आरोप लगाया गया है कि सिद्धरमैया की पत्नी को मैसुरु के एक उच्चस्तरीय क्षेत्र में उस भूखंड को आवंटित किया गया था, जिसका संपत्ति मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे मुडा द्वारा ‘‘अधिग्रहित’’ किया गया था।

विपक्ष के नेता आर. अशोक जैसे ही इस मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव लाने के लिए दबाव बनाने लगे, विधि एवं संसदीय कार्य मंत्री एच. के. पाटिल ने कहा कि नियमों के अनुसार इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती।

‘‘कर्नाटक विधानसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन’’ के नियमों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जो मुद्दे किसी न्यायाधिकरण या आयोग या प्राधिकरण या अदालतों के समक्ष निर्णय के लिए निर्धारित हैं, उन पर आमतौर पर स्थगन प्रस्ताव के रूप में अनुमति नहीं दी जा सकती।

उन्होंने कहा कि जांच आयोग अधिनियम, 1952 के अनुसार आरोपों की जांच के लिए सरकार द्वारा 14 जुलाई, 2024 को उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. एन. देसाई की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया था।

भाजपा के वरिष्ठ विधायक सुरेश कुमार ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष जांच की प्रक्रिया में बाधा डाले बिना चर्चा की अनुमति दे सकते हैं।

पाटिल ने सवाल किया कि क्या यह मामला स्थगन प्रस्ताव के रूप में उठाने के लिए ‘‘वास्तव में जरूरी’’ था।

अशोक ने कहा कि यह घोटाला कथित तौर पर 3,000 करोड़ रुपये का है और उन्होंने पूछा, ‘‘क्या इस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए?’’

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अध्यक्ष ने स्थगन प्रस्ताव के नोटिस को खारिज कर दिया और विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही भोजनावकाश के लिए स्थगित कर दी।

भाषा

देवेंद्र नरेश

नरेश


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