कच्चे माल की कीमतें बढ़ने के कारण मकर संक्रांति से पहले पतंगों के दाम 40 प्रतिशत तक बढ़े

कच्चे माल की कीमतें बढ़ने के कारण मकर संक्रांति से पहले पतंगों के दाम 40 प्रतिशत तक बढ़े

कच्चे माल की कीमतें बढ़ने के कारण मकर संक्रांति से पहले पतंगों के दाम 40 प्रतिशत तक बढ़े
Modified Date: December 13, 2025 / 09:40 am IST
Published Date: December 13, 2025 9:40 am IST

छत्रपति संभाजीनगर, 13 दिसंबर (भाषा) कच्चे माल की कीमतों में तेज बढ़ोतरी के कारण इस साल पतंगों के दामों में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसका असर मकर संक्रांति पर्व से पहले पतंग निर्माताओं पर पड़ा है।

एक निर्माता ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि पिछले साल जहां एक पतंग की न्यूनतम कीमत पांच रुपये थी, वह इस साल बढ़कर सात रुपये हो गई है।

छत्रपति संभाजीनगर के बुड़ी लेन इलाके में रहने वाला राजपूत परिवार पिछले 60 वर्ष से अधिक समय से पतंग बनाने के व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। वे महाराष्ट्र और पड़ोसी राज्यों तक पतंगों की आपूर्ति करते हैं। हर साल त्योहारों के सीजन में स्थानीय और बाहर से आने वाले खरीदार बड़ी संख्या में उनकी दुकानों पर पहुंचते हैं। फिलहाल राजपूत परिवार की निर्माण इकाई में पतंग बनाने का काम पूरे जोर-शोर से जारी है।

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कीमतों में बढ़ोतरी पर बात करते हुए पतंग निर्माता अनिल राजपूत ने कहा कि पिछले साल की तुलना में कच्चे माल की कीमत में काफी इजाफा हुआ है।

उन्होंने कहा, “पिछले साल हमें कागज की रिम 900 रुपये में पड़ती थी, जो इस साल बढ़कर 1,100 रुपये हो गई है। पहले बांस की 1,000 तीलियों का बंडल 1,050 रुपये का था, लेकिन अब इसकी कीमत लगभग दोगुनी होकर करीब 2,000 रुपये हो गई है।”

उन्होंने कहा कि उत्पादन लागत में हुई इस बढ़ोतरी का सीधा असर पतंगों की कीमतों पर पड़ा है।

राजपूत ने कहा, “पिछले साल एक पतंग की न्यूनतम कीमत पांच रुपये थी, जो इस साल बढ़कर सात रुपये हो गई है। अब हमें ग्राहकों को बढ़ी हुई कीमत का कारण समझाना पड़ता है।”

राजपूत ने अपने पारंपरिक पारिवारिक व्यवसाय के भविष्य को लेकर भी चिंता जताई।

उन्होंने कहा, “पतंग बनाना बहुत मेहनत का काम है। हमारी नयी पीढ़ी इस काम को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं ले रही। इस उम्र में हम पेशा नहीं बदल सकते, इसलिए परिवार का भरण-पोषण करने के लिए यह काम जारी रखे हुए हैं।”

परिवार के सदस्य लंबे समय तक काम करते हैं। उनका काम अक्सर सुबह नौ बजे शुरू होकर रात दो बजे तक चलता है।

उन्होंने कहा, “मेरी पत्नी पहले लकवे की शिकार हो गई थीं, लेकिन अब उनकी हालत में सुधार हो रहा है, इसलिए उन्होंने भी काम में हमारी मदद करनी शुरू कर दी है।”

परिवार के एक अन्य सदस्य गोवर्धन राजपूत ने कहा कि पतंग बनाना उनका पुश्तैनी पेशा है और यह साल भर चलता है, अगस्त–सितंबर में गणेशोत्सव के बाद काम तेज हो जाता है।

उन्होंने कहा, “हमारी पतंगों की आपूर्ति तेलंगाना के निजामाबाद के अलावा नांदेड़, वैजापुर और येवला जैसे स्थानों पर होती है।”

उन्होंने यह भी कहा कि मकर संक्रांति नजदीक आने के साथ ही आने वाले दिनों में कारोबार में काफी तेजी आने की उम्मीद है।

भाषा जोहेब सिम्मी

सिम्मी


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