नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में आवारा कुत्तों के संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेश की सोमवार को कड़ी आलोचना की।
मेनका ने आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखने के शीर्ष अदालत के निर्देश को “अव्यावहारिक”, “वित्तीय लिहाज से अनुपयुक्त” और क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन के लिए “संभावित रूप से हानिकारक” करार दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने आवारा कुत्तों की समस्या को “बेहद गंभीर” बताते हुए दिल्ली सरकार और नगर निकायों को सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को जल्द से जल्द उठाने और आश्रय स्थलों में रखने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने इस अभियान में बाधा डालने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी।
मेनका ने कहा कि इस काम की जटिलता इसे “अव्यावहारिक” बनाती है।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “दिल्ली में तीन लाख आवारा कुत्ते हैं। उन सभी को सड़कों से हटाने के लिए आपको 3,000 ‘पाउंड’ (पालतू जानवरों के लिए आश्रय स्थल) बनाने होंगे, जिनमें से प्रत्येक में जल निकासी, पानी, शेड, रसोई और चौकीदार की व्यवस्था हो। इस पर लगभग 15,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। क्या दिल्ली के पास इसके लिए 15,000 करोड़ रुपये हैं?”
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सड़कों से उठाए गए आवारा कुत्तों के लिए खाने की व्यवस्था करने पर हर हफ्ते पांच करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। उन्होंने आगाह किया कि आवारा कुत्तों को हटाने से नयी समस्याएं पैदा हो सकती हैं और इससे जनता में आक्रोश भी फैल सकता है।
मेनका ने फैसले की वैधता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि एक महीने पहले ही शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ ने इसी मुद्दे पर एक “संतुलित फैसला” सुनाया था।
मेनका ने कहा, “अब एक महीने बाद दो सदस्यीय पीठ दूसरा फैसला देती है, जिसमें कहा गया है कि ‘सबको पकड़ो।’ कौन-सा फैसला सही है? जाहिर है, पहला वाला, क्योंकि यह पक्षों की सहमति वाला फैसला है।”
उन्होंने कहा, “48 घंटों के भीतर गाजियाबाद और फरीदाबाद से तीन लाख कुत्ते आ जाएंगे, क्योंकि दिल्ली में खाना उपलब्ध है। और जैसे ही आप कुत्तों को हटाएंगे, बंदर सड़क पर आ जाएंगे… मैंने अपने घर में भी ऐसा होते देखा है। 1880 के दशक में पेरिस में, जब कुत्तों और बिल्लियों को हटाया गया, तो शहर चूहों से भर गया था।”
भाषा पारुल संतोष
संतोष