मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न हिस्सा: उच्चतम न्यायालय

मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न हिस्सा: उच्चतम न्यायालय

मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न हिस्सा: उच्चतम न्यायालय
Modified Date: May 23, 2025 / 10:36 pm IST
Published Date: May 23, 2025 10:36 pm IST

नयी दिल्ली, 23 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न अंग है और प्रजनन अधिकारों को अब स्वास्थ्य, गोपनीयता, समानता और गैर-भेदभाव तथा सम्मान के अधिकार की तरह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का हिस्सा माना गया है।

शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका को मातृत्व अवकाश देने से इनकार करने संबंधी मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को भी खारिज कर दिया और कहा कि पहले पति से दो बच्चे होने के बावजूद वह इस लाभ की हकदार है।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ उच्च न्यायालय के उस निष्कर्ष से सहमत नहीं थी, जिसमें महिला को मातृत्व लाभ देने से इनकार किया गया था।

 ⁠

फैसले में कहा गया है, ‘‘इस प्रकार, जैसा कि देखा जा सकता है… विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से, विश्व समुदाय ने प्रजनन अधिकारों के व्यापक दायरे को मान्यता दी है, जिसमें मातृत्व लाभ भी शामिल है।’’

इसके अनुसार, ‘‘मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न अंग है। प्रजनन अधिकारों को अब अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के कई परस्पर संबद्ध क्षेत्रों के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है, जैसे स्वास्थ्य का अधिकार, निजता का अधिकार, समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार तथा सम्मान का अधिकार।’’

न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के व्यापक दायरे पर जोर दिया, जो स्वास्थ्य, सम्मान और प्रजनन संबंधी विकल्प के अधिकार समेत जीवन के अधिकार की गारंटी देता है।

इसने कहा, ‘‘जीवन के अधिकार में, मानव सभ्यता के सभी बेहतरीन गुण शामिल हैं, इस प्रकार यह मौलिक अधिकार विभिन्न मानव अधिकारों का भंडार बन जाता है। जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है। मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार और निजता का अधिकार अब अनुच्छेद 21 के स्वीकृत पहलू हैं।’’

न्यायालय ने अनुच्छेद 42 का भी उल्लेख किया, जो काम की न्यायसंगत और मानवीय स्थितियों और मातृत्व राहत को अनिवार्य बनाता है और प्रशासनिक नियमों की कठोर व्याख्या की आलोचना करता है, जो बच्चों की संख्यात्मक सीमाओं के आधार पर ऐसे लाभों से इनकार करते हैं।

धर्मपुरी जिले के एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी शिक्षिका दिसंबर 2012 में सेवा में शामिल हुईं और उनकी पहली शादी से दो बच्चे हैं।

तलाक के बाद 2018 में, उसने दोबारा शादी कर ली और 2021 में गर्भवती हुई। उसने 17 अगस्त 2021 से 13 मई 2022 तक मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था, जिसमें प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर, दोनों अवधि शामिल है।

तमिलनाडु के अधिकारियों ने मौलिक नियम 101 (ए) का हवाला देते हुए उसके अनुरोध को खारिज कर दिया था।

मद्रास उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और शिक्षा विभाग को मातृत्व अवकाश देने का आदेश दिया। हालांकि, राज्य सरकार ने अपील की और एक खंडपीठ ने इस फैसले को पलट दिया, जिससे शिक्षिका को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था।

भाषा सुभाष देवेंद्र

देवेंद्र


लेखक के बारे में