प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय संस्कृति और भाषाओं को विश्व स्तर पर फैलाने के प्रयासों की सराहना की
प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय संस्कृति और भाषाओं को विश्व स्तर पर फैलाने के प्रयासों की सराहना की
नयी दिल्ली, 28 दिसंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को फिजी में नई पीढ़ी को तमिल भाषा से जोड़ने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की।
अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उन्होंने दुबई में रहने वाले कन्नड़ परिवारों द्वारा अपने बच्चों को कन्नड़ भाषा सिखाने के लिए ‘कन्नड़ पाठशाला’ शुरू करने के प्रयासों की भी सराहना की।
उन्होंने कहा, “ अब मैं आपसे भारत से हजारों किलोमीटर दूर, एक ऐसे प्रयास की बात करना चाहता हूं, जो दिल को छू लेने वाला है। फिजी में भारतीय भाषा और संस्कृति के प्रसार के लिए एक सराहनीय पहल हो रही है। वहां की नई पीढ़ी को तमिल भाषा से जोड़ने के लिए कई स्तरों पर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले महीने फिजी के राकी-राकी इलाके के एक स्कूल में पहली बार तमिल दिवस मनाया गया।
उन्होंने कहा, “उस दिन बच्चों को एक ऐसा मंच मिला, जहां उन्होंने अपनी भाषा पर खुले दिल से गौरव व्यक्त किया। बच्चों ने तमिल में कविताएं सुनाई, भाषण दिए और अपनी संस्कृति को पूरे आत्मविश्वास के साथ मंच पर उतारा।”
मोदी के मुताबिक, देश में भी तमिल भाषा के प्रचार के लिए लगातार काम हो रहा है।
उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले ही उनके संसदीय क्षेत्र काशी में चौथा ‘काशी तमिल संगमम’ हुआ और एक ऑडियो क्लिप सुनाया, जिसमें शहर के बच्चे तमिल भाषा धाराप्रवाह बोल रहे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘उनकी मातृभाषा हिंदी है, लेकिन तमिल भाषा के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें तमिल सीखने के लिए प्रेरित किया।’
मोदी ने कहा कि इस वर्ष वाराणसी में आयोजित ‘काशी तमिल संगमम’ के दौरान तमिल भाषा सीखने पर विशेष जोर दिया गया और ‘तमिल सीखें – तमिल कराकलम’ की थीम के तहत वाराणसी के 50 से अधिक स्कूलों में विशेष अभियान भी चलाए गए।
विदेश में रहने वाले भारतीयों द्वारा अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि दुबई में रहने वाले कन्नड़ परिवारों ने खुद से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा: हमारे बच्चे तकनीकी दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन क्या वे अपनी भाषा से दूर नहीं जा रहे हैं?
उन्होंने कहा, “ यहीं से जन्म हुआ ‘कन्नड़ पाठशाला’ का। एक ऐसा प्रयास, जहां बच्चों को ‘कन्नड़’ पढ़ाना, सीखना, लिखना और बोलना सिखाया जाता है। आज इससे एक हजार से ज्यादा बच्चे जुड़े हैं। वाकई, कन्नड़ नाडु, नुडी नम्मा हेम्मे। कन्नड़ की भूमि और भाषा, हमारा गर्व है।”
भाषा नोमान दिलीप
दिलीप

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